
नई दिल्ली, 31 जुलाई 2025
आज शहीद ऊधम सिंह का शहादत दिवस है—वह नाम, जिसने भारत के आज़ादी के आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर गर्जना दी थी। ऊधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में जनरल माइकल ओ’डायर को गोलियों से भून डाला था। यह वही डायर था, जो 1919 के जालियांवाला बाग हत्याकांड का मास्टरमाइंड था, जिसमें सैकड़ों निहत्थे भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
शहीद ऊधम सिंह उस समय महज़ 20 साल के थे जब उन्होंने जालियांवाला बाग की वह खौफनाक दोपहर देखी थी। हजारों भारतीय शांतिपूर्वक सभा कर रहे थे और जनरल डायर ने बिना चेतावनी गोलियां चलवा दीं। ऊधम सिंह इस जनसंहार के चश्मदीद थे। उसी पल उन्होंने बदला लेने की कसम खाई थी—“डायर को नहीं छोड़ूंगा।”
इस प्रतिज्ञा ने उन्हें अगले 21 साल तक बेचैन रखा। उन्होंने कई देशों की यात्रा की, अपना नाम बदला, क्रांतिकारियों से संपर्क में रहे और मौका मिलते ही ब्रिटिश हुकूमत के दिल—लंदन—में जाकर डायर को मौत के घाट उतार दिया।
13 मार्च 1940 को कैक्सटन हॉल में ब्रिटिश हुकूमत की एक बैठक चल रही थी, ऊधम सिंह वहां ‘राम मोहम्मद सिंह आज़ाद’ के नाम से पिस्टल लेकर पहुंचे। जैसे ही डायर बोलने खड़ा हुआ, उन्होंने गोलियां दाग दीं।
गिरफ्तारी के बाद भी ऊधम सिंह बेखौफ रहे। उन्होंने कोर्ट में कहा—“यह बदला था उस नरसंहार का। डायर को मारकर मैंने कोई जुर्म नहीं किया, बल्कि इंसाफ किया।”
31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को फांसी दे दी गई। लेकिन उनके इस बलिदान ने ब्रिटिश हुकूमत को झकझोर दिया और भारत की आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा मिली।
आज ऊधम सिंह को याद करना सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उन सभी युवाओं को प्रेरित करना है जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहते हैं।