Lucknow CityNational

नई सोशल इंजीनियरिंग पर जोर : PDA समीकरण के सहारे 2027 में सूबे की सत्ता में वापसी की मशक्कत

RECAP-2025, समाजवादी पार्टी

यूपी की राजनीति में साल 2025 एक निर्णायक पड़ाव बन चुका है। समाजवादी पार्टी (सपा) इस साल विपक्ष की मुख्य धुरी के रूप में उभरने के साथ उसने 2027 के विधानसभा चुनाव की बिसात अभी से बिछानी शुरू कर दी है। पार्टी मुखिया अखिलेश यादव का दांव साफ है कि PDA यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को केंद्र में रखकर नई सामाजिक संरचना गढ़ने के साथ संगठन को बूथ स्तर तक पुनर्गठित करने और भाजपा की सत्ता के खिलाफ जनमत का माहौल तैयार करना है।

अब यादव-मुस्लिम समीकरण से आगे बढ़कर सियासत पर जोर

वर्ष 2024 के चुनावी अनुभव के बाद सपा को एहसास हुआ कि सिर्फ पारंपरिक वोट बैंक पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा। यही वजह है कि पार्टी अब यादव-मुस्लिम समीकरण से आगे बढ़कर नई सामाजिक इंजीनियरिंग पर जोर दे रही है। PDA को लेकर अखिलेश की रणनीति को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों में भी चर्चा है। माना जा रहा है कि यह फॉर्मूला उत्तर प्रदेश की राजनीति में 1990 के दशक वाले मंडल-कमंडल समीकरण का नया संस्करण साबित हो सकता है।

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.29 PM (1)

भाजपा पर लगातार तीखा हमला, दिखा सीधा टकराव

अखिलेश यादव का भाजपा पर हमला भी लगातार तीखा हो रहा है। वे केंद्र और प्रदेश की सरकारों पर आरोप लगा रहे हैं कि विकास का एजेंडा सिर्फ कागजों और विज्ञापनों में चमक रहा है। असल में जमीनी हकीकत अलग है दूसरी ओर सपा के PDA कार्ड को भाजपा राजनीतिक छलावा बताती रही और यह दावा करती है कि 2027 में भी जनता कमल पर ही भरोसा जताएगी।

इन दोनों दलों के बीच यह सीधा टकराव 2025 को राजनीतिक रूप से सबसे गर्म सालों में बदल गया है। चुनावी तैयारियों की दृष्टि से भी सपा इस बार पहले से कहीं अधिक सतर्क दिखाई देती है। बूथ कमेटियों का गठन, प्रशिक्षण शिविर, सोशल मीडिया टास्क फोर्स और युवा इकाइयों को सक्रिय करने की प्रक्रिया तेज की गई है।

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.45 PM

स्थानीय स्तर पर चुनौतियां कम नहीं, समर्थकों का बढ़ाया मनोबल

वहीं स्थानीय स्तर पर सपा की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। पार्टी को अब भी कई जनपदों में सक्रिय स्थानीय नेतृत्व का अभाव महसूस होता है। यही वह कमजोरी है जिसने 2022 के चुनाव में सपा के प्रदर्शन पर खासा असर डाला। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती देकर सपा ने अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाया है। 2025 की शुरुआत में हुए कुछ उपचुनावों में भाजपा के फिर से मजबूत प्रदर्शन ने सपा की राह आसान नहीं रहने दी लेकिन इससे अखिलेश की आलोचना शक्ति और तेज हुई है।

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.28 PM (1)

आगामी विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन के साथ लड़ने के संकेत

गठबंधन की राजनीति की बात करें तो 2025 ने विपक्षी राजनीति के समीकरणों को उलझाया भी है और जोड़ा भी। एक ओर अखिलेश यादव ने संकेत दिए कि वे 2027 का चुनाव इंडिया गठबंधन के साथ लड़ने के पक्ष में हैं। वहीं बसपा अपने रास्ते पर अकेले चलने की तैयारी में दिखाई दे रही है। कांग्रेस और सपा का रिश्ता भी उतना सहज नहीं दिखता। यह विपक्षी एकता के समीकरण को और पेचीदा बनाता है।

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.45 PM (1)

राजनीति के इस टकराव में बढ़ा नारों का भी महत्व

बीजेपी की रणनीति भी किसी से छिपी नहीं है। पार्टी अपने ‘कमल-मिशन 2027’ के तहत विकास, हिन्दुत्व और लाभार्थी योजनाओं के भरोसे दोबारा सत्ता में वापसी का रोडमैप तैयार कर रही है। सपा इस रणनीति का मुकाबला सामाजिक न्याय, संवैधानिक अधिकार और सामाजिक समावेशन के एजेंडे से करना चाहती है।
राजनीति के इस टकराव में नारों का महत्व भी बढ़ गया है। सपा के नारों का केंद्र भाजपा की नीतियों पर सवाल उठाना और PDA समुदाय के सशक्तिकरण का विश्वास जताना है। दूसरी ओर भाजपा इसे ‘जातिगत राजनीति’ बताकर खारिज करती है। यह माहौल बताता है कि 2027 का चुनाव सिर्फ सत्ता का संघर्ष नहीं, बल्कि विचारधाराओं की भिड़ंत भी होगा।

उपलब्धियों से अधिक तैयारी पर रहा है फोकस

यूपी में राजनीति हमेशा से आंकड़ों, जातीय समीकरणों और विकास की बहस के बीच पनपती रही है लेकिन 2025 इस राजनीतिक यात्रा में एक दिलचस्प मोड़ लेकर आया है। सपा के लिए यह पुनर्निर्माण का वर्ष कहा जा सकता है, जहां उपलब्धियों से अधिक तैयारी पर फोकस है जबकि भाजपा के लिए यह पकड़ बनाए रखने का वर्ष है। जहां उसे असंतोष को अवसर नहीं बनने देना है। एक ओर सपा 2027 में वापसी के सपने संजोए है, वहीं यह सवाल अब भी हवा में तैर रहा है कि क्या PDA की राजनीति भाजपा की मजबूत चुनावी मशीनरी का सशक्त जवाब बन पाएगी? क्या विपक्षी एकजुटता का स्वरूप वक्त रहते ठोस रूप ले पाएगा?

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.28 PM

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.46 PM (1)

अनुशासन और वफादारी को प्राथमिकता : चार विधायकों की छुट्टी

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग पर देर से ही सही, समाजवादी पार्टी ने सख्त कदम उठाते हुए अपनी भावी राजनीतिक रणनीति के संकेत दे दिए हैं। फरवरी 2024 के राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोट करने वाले ऊंचाहार के मनोज पांडेय, गोसाईगंज के अभय सिंह और गौरीगंज के राकेश प्रताप सिंह को जून 2025 में पार्टी से निष्कासित किया गया, जबकि योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की विधानसभा में तारीफ करने पर पूजा पाल को अगस्त में बाहर का रास्ता दिखाया गया। इन कार्रवाइयों को सपा के भीतर अनुशासन और वफादारी को सर्वोच्च मानने वाली नई प्राथमिकता के तौर पर देखा जा रहा है।

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.22.46 PM

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.22.45 PM

जनाधार कम होने व स्थानीय समीकरणों पर नकारात्मक असर की आशंका

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव 2027 विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को मजबूत और बगावत-मुक्त करने की दिशा में अग्रसर हैं। क्रॉस वोटिंग के कारण सपा प्रत्याशी की हार और भाजपा की अप्रत्याशित जीत ने पार्टी की अंदरूनी कमजोरी उजागर की थी, जिसका असर पार्टी की साख पर पड़ा। हालांकि, निष्कासनों से कुछ क्षेत्रों में जनाधार के क्षरण और स्थानीय समीकरणों पर नकारात्मक असर की आशंका बनी हुई है। ऐसे में सपा की असली चुनौती अनुशासन और राजनीतिक संतुलन के बीच सामंजस्य साधते हुए पुनर्गठन करने की होगी।

WhatsApp Image 2025-12-31 at 2.19.46 PM

2025 के राजनीतिक संकेत यह रुझान देते हैं कि आने वाला समय सिर्फ चुनावी रणनीतियों का ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की पहचान, दिशा और लोकतांत्रिक मूल्यों की लड़ाई का भी होगा। यही वजह है कि 2027 को लेकर अभी से राजनीति में तीखी गर्मी महसूस होने लगी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button