
अमित मिश्रा
महाकुम्भ नगर,12 फरवरी 2025:
80 के दशक की फिल्मों में कुंभ मेले का दृश्य आते ही एक चित्र उभरता है — भीड़ में बिछड़ा बच्चा, परिवार की तलाश, और सालों बाद मिलन का भावुक पल! लेकिन 2025 के महाकुंभ में यह कहानी पुराने जमाने की बात लगती है। आज के अभिभावकों ने न केवल तकनीक बल्कि रचनात्मक तरीकों से इस खतरे को न्यूनतम कर दिया है।
भोपाल के एक परिवार ने बच्चों की हथेली पर मेहंदी से माता-पिता का नाम और मोबाइल नंबर लिखकर एक अनूठी पहल की है। यह विचार न सिर्फ सरल है, बल्कि भीड़ में बच्चे की पहचान और सुरक्षा का एक प्रभावी उपाय भी है ।
फिल्मी कहानियों से वास्तविकता तक: सुरक्षा के बदलते तरीके
1980-90 के दशक में कुंभ मेले में बिछड़ने की घटनाएं आम थीं। लेकिन आज, प्रशासनिक व्यवस्था और जागरूक अभिभावकों ने मिलकर इसे नियंत्रित करने की कोशिश की है। भोपाल के परिवार की मेहंदी वाली तरकीब इसी सजगता का उदाहरण है। यह विधि पारंपरिक “आईडी टैग” या कपड़ों पर नंबर लिखने के सुझावों का ही एक सांस्कृतिक रूपांतरण है ।
सामूहिक जिम्मेदारी: समाज और प्रशासन का सहयोग
आज का कुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सुरक्षा और प्रबंधन का उदाहरण भी है। 10 सेक्टरों में खोया-पाया केंद्र , 24×7 स्वास्थ्य सेवाएं , और रेलवे की 992 विशेष ट्रेनें इसकी पुष्टि करती हैं। साथ ही, श्रद्धालुओं को ऐप के माध्यम से रीयल-टाइम अपडेट मिलते हैं।
सुरक्षा की नई परिभाषा
भोपाल के परिवार की मेहंदी वाली पहल दर्शाती है कि सुरक्षा के लिए नवाचार और परंपरा का सही मेल जरूरी है। आज के दौर में, जहां प्रशासनिक व्यवस्था और तकनीक मददगार हैं, वहीं अभिभावकों की सजगता ने फिल्मी कहानियों को महज एक सिनेमाई फंतासी बना दिया है।
अब कुंभ में बिछड़ने का डर नहीं, बस आस्था और सावधानी का संगम है।