
अंशुल मौर्य
वाराणसी,26 मार्च 2025:
वाराणसी, जहां हर गली-मोहल्ले में संस्कृति की छाप दिखती हैं, एक बार फिर राजस्थानी संस्कृति के रंगों से सज जाएगा। श्री गवरजा माता उत्सव समिति द्वारा आयोजित यह उत्सव, एक ऐसी सांस्कृतिक यात्रा है जो बदलते समय की धारा में अपनी जड़ों को गहराई से जमाए हुए है।

संस्कृति की कहानी: 70 वर्षों का सफर
जब 1950 के दशक में राजस्थानी समुदाय ने वाराणसी में अपना पहला पांव रखा, तब से यह उत्सव उनकी पहचान बन गया। हर साल, यह त्योहार न सिर्फ एक परंपरा है, बल्कि एक जीवंत स्मृति भी जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचारित होती है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘सिंघारा’
28 मार्च को शाम 5 बजे शुभम लॉन, महमूरगंज में ‘गणगौर आपणी धरोहर’ थीम पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘सिंघारा’ होगा। इसमें राजस्थानी और हरियाणवी समाज की महिलाएं व युवतियां पारंपरिक गीतों पर नृत्य, नाट्य मंचन और अन्य प्रस्तुतियां देंगी, जो राजस्थानी रीति-रिवाजों की झलक पेश करेंगी।
भव्य शोभायात्रा और गणगौर पूजन
31 मार्च को अपराह्न 3 बजे गोलघर स्थित श्री काशी जीवदया विस्तारिणी गौशाला से भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। यह शोभायात्रा चौक, गोदौलिया और गिरजाघर होते हुए श्री श्याम मंदिर पहुंचेगी। वहां समाज की महिलाएं और युवतियां मां गणगौर का पूजन करेंगी, साथ ही विभिन्न घरों से लाई गई गणगौर प्रतिमाओं का विसर्जन लक्ष्मी कुंड में किया जाएगा।

समुदाय की एकता और सांस्कृतिक विरासत
संरक्षक आर.के. चौधरी ने कहा कि गणगौर का यह पर्व राजस्थान और हरियाणा के सभी समुदायों को एकता के सूत्र में बांधता है। यह महिलाओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे देशभर में फैले इन समुदायों द्वारा उत्साह से मनाया जाता है। पत्रकार वार्ता में दीपक कुमार बजाज, आर.के. चौधरी, उमाशंकर अग्रवाल, पवन अग्रवाल सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। शोभायात्रा में वाराणसी के विधायकों, मंत्रियों और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि काशी में बसी राजस्थानी संस्कृति के गौरव को भी प्रदर्शित करेगा।






