Uttar Pradesh

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार से बनारसी साड़ी व्यापारियों का ऐतिहासिक फैसला

अंशुल मौर्य
वाराणसी,12 दिसम्बर 2024 :

सदियों से रेशम के धागों में काशी की संस्कृति को बुनने वाले बनारस के साड़ी व्यापारियों ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। बांग्लादेश में हो रही घटनाओं के विरोध में, इन व्यापारियों ने करोड़ों का नुकसान उठाने की कीमत पर भी व्यापारिक रिश्ते तोड़ने का साहसिक निर्णय किया है।

“मेरे पिता कहा करते थे कि व्यापार सिर्फ पैसों का लेन-देन नहीं होता,” बनारस के प्रतिष्ठित साड़ी व्यापारी विवेक पारिख ने गंभीर स्वर में कहा। उनके गोदाम में लाखों रुपये की साड़ियां धूल फांक रही हैं, जो बांग्लादेश भेजी जानी थीं। “हमारे करोड़ों रुपये वहां फंसे हैं, सैकड़ों ऑर्डर कैंसिल हो गए हैं, लेकिन कोई बात नहीं। पैसा तो आता-जाता रहेगा, लेकिन सिद्धांत नहीं बिकने चाहिए।”

चौक की संकरी गलियों में स्थित अपनी दुकान में बैठे मनोज यादव ने बताया कि पिछले 30 सालों से उनका परिवार बांग्लादेश के साथ व्यापार कर रहा था। “कभी सोचा नहीं था कि ऐसा दिन भी आएगा। लेकिन अब एक भी साड़ी बांग्लादेश नहीं जाएगी, भले ही हमें नुकसान उठाना पड़े।”

काशी की जनता ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा, “बनारस की साड़ी सिर्फ कपड़ा नहीं है, यह हमारी सभ्यता का प्रतीक है। इसमें हमारी कला है, संस्कृति है, और सबसे बढ़कर हमारी आस्था है।”

वाराणसी के साधु-संतों ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है। एक विशाल सभा का आयोजन किया गया, जहां सैकड़ों साधु-संतों ने व्यापारियों के इस निर्णय का समर्थन किया। उन्होंने जिलाधिकारी को एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की गई है।

यह फैसला सिर्फ एक व्यापारिक निर्णय नहीं है। यह एक ऐसा संदेश है जो बताता है कि बनारस के व्यापारी अपने सिद्धांतों और मूल्यों को व्यापार से ऊपर रखते हैं। भले ही इस फैसले से उन्हें आर्थिक नुकसान हो, लेकिन उनके लिए मानवीय मूल्य और सम्मान सर्वोपरि हैं।
कई व्यापारियों ने नए बाजारों की तलाश शुरू कर दी है। कुछ ने घरेलू बाजार पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कठिन समय में भी वे एकजुट हैं और अपने फैसले पर अडिग हैं।

“हम जानते हैं कि यह आसान नहीं होगा,” विवेक पारिख ने अंत में कहा, “लेकिन कभी-कभी जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं जहां आपको अपने सिद्धांतों के लिए खड़े होना पड़ता है। और आज वही समय है।”

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