
नई दिल्ली, 5 जुलाई 2025:
भारत ने साफ कर दिया है कि वह अमेरिकी कानून के दबाव में आकर अपनी ऊर्जा नीति नहीं बदलेगा। रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने के अपने फैसले पर अडिग रहते हुए भारत ने अमेरिका को संकेत दे दिया है कि वह राष्ट्रीय हितों के आधार पर ही कोई निर्णय करेगा। हाल ही में अमेरिका में एक प्रस्तावित विधेयक के तहत उन देशों पर 500% टैरिफ लगाने की तैयारी है जो रूस से तेल आयात कर रहे हैं। इसके बावजूद भारत ने जून में रिकॉर्ड 43.2% कच्चा तेल रूस से आयात किया है।
2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस ने अपने तेल पर भारी छूट देनी शुरू की, जिससे भारत के लिए यह एक किफायती विकल्प बन गया। पहले जहां पश्चिम एशियाई देश भारत के प्रमुख आपूर्तिकर्ता थे, अब रूस ने उन्हें पीछे छोड़ दिया है। केप्लर के अनुसार, भारत ने जून में रूस से 2.08 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो बीते 11 महीनों में सबसे अधिक है।
वहीं अमेरिका के प्रस्तावित विधेयक पर भारत की चिंता भी बनी हुई है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम से मुलाकात कर भारत के ऊर्जा हितों की जानकारी दी है। यदि यह कानून पारित होता है, तो भारत को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी पड़ सकती है जिससे तेल की लागत बढ़ेगी और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता प्रभावित हो सकती है।
रूस के साथ लगातार मजबूत होते रिश्तों के बीच भारत की नीति स्पष्ट है—जो सबसे बेहतर सौदा देगा, उससे तेल खरीदा जाएगा। भारतीय रिफाइनर फिलहाल प्रतीक्षा की नीति पर चल रहे हैं लेकिन रूस से आयात स्थिर बना हुआ है। भू-राजनीतिक परिस्थितियों और कीमतों की प्रतिस्पर्धा के चलते आने वाले महीनों में भी रूस भारत का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना रह सकता है। भारत का यह रुख वैश्विक मंच पर उसकी स्वतंत्र विदेश और ऊर्जा नीति की झलक देता है।






