
दमिश्क/जेरूशलम, 17 जुलाई 2025
सीरिया के दक्षिणी स्वेदा शहर में ड्रूज और बैनेदोई समुदाय के बीच हिंसक झड़पों के बाद हालात बिगड़ते जा रहे हैं। चार दिनों से जारी संघर्ष में अब तक 350 से अधिक ड्रूज समुदाय के लोग मारे जा चुके हैं। इस टकराव के बाद इजराइल ने सीरिया के खिलाफ सैन्य अभियान तेज कर दिया है। पहले दमिश्क और फिर अन्य शहरों पर इजराइली सेना ने बमबारी की, जिसमें सीरियाई रक्षा मंत्रालय और आर्मी मुख्यालय को निशाना बनाया गया। सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, हमलों में कम से कम 15 सरकारी अधिकारी मारे गए हैं।
इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ड्रूज समुदाय है कौन, और क्यों इजराइल इनकी सुरक्षा को लेकर इतना सक्रिय है। ड्रूज न तो पूरी तरह मुस्लिम हैं, न ईसाई और न यहूदी। ये एक अलग धार्मिक पहचान वाले लोग हैं, जिनकी उत्पत्ति 11वीं सदी में मिस्र के फातिमी खलीफा अल-हाकिम के काल में हुई थी। नस्लीय रूप से ये अरब हैं, लेकिन इस्लाम से अलग होकर इन्होंने एक अलग धार्मिक मार्ग अपनाया। ये कुरान और कुछ इस्लामी सिद्धांतों का सम्मान करते हैं, पर नमाज, रोजा और हज जैसे कर्तव्यों का पालन नहीं करते।
सीरिया में इनकी आबादी 7 से 8 लाख के बीच है, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 3 से 4 प्रतिशत है। वहीं इजराइल में इनकी संख्या 1.5 लाख से अधिक है। खास बात यह है कि इजराइल में ड्रूज समुदाय ही ऐसा अरब भाषी अल्पसंख्यक है, जो सेना में स्वेच्छा से भर्ती होता है। ये नागरिक जिम्मेदारियों में भागीदारी करते हैं, मतदान करते हैं और कई तो सरकारी पदों पर भी कार्यरत हैं।
मिडिल ईस्ट की राजनीति में ड्रूज समुदाय को संतुलनकारी भूमिका निभाने वाला माना जाता है। वर्तमान संकट ने एक बार फिर इस समुदाय को वैश्विक सुर्खियों में ला दिया है।