
सिमिकोट (नेपाल), 8 जुलाई:
कैलास मानसरोवर यात्रा के दूसरे चरण में लेखक हेमंत शर्मा अपने अनुभवों को साझा करते हैं, जो शिवमय भक्ति और हिमालय की कठिन परिस्थितियों में आस्था की परीक्षा की अद्वितीय यात्रा का वर्णन है। इस चरण की शुरुआत होती है नेपालगंज से सिमिकोट की कठिन उड़ान से, जहां 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे सिमिकोट गांव में शिव के प्रति श्रद्धा का भाव और भी प्रगाढ़ हो उठता है।
नेपालगंज में माओवादियों की नाकेबंदी के बीच लेखक की सुरक्षित यात्रा वहां के एक पुराने मित्र की मदद से संभव हो सकी, जो संयोग से अब माओवादी एरिया कमांडर बन चुके थे। इसके बाद सात सीटों वाले एक हेलीकॉप्टर में सवार होकर लेखक सिमिकोट पहुंचे, जहां ऊंचाई की वजह से सांस की दिक्कतें शुरू हुईं और शरीर का संतुलन बिगड़ने लगा।
कप्तान प्रधान की सलाह पर सबको विश्राम दिया गया ताकि शरीर नई ऊंचाई के अनुरूप तालमेल बिठा सके। यह प्रतीक्षा शिव की यात्रा को गहराई से समझने का अवसर बन गई। शारीरिक तकलीफों के बीच लेखक का मन शिव की विराटता और लोकप्रियता पर केंद्रित रहा। शिव की तुलना राम और कृष्ण से करते हुए वे लिखते हैं कि शिव मर्यादा, उल्लास और असीमता के अद्भुत समन्वयक हैं — शोक और अभाव में भी उत्सव मनाने वाले देवता।
लेखक बताते हैं कि सिमिकोट, भले नेपाल में है, लेकिन वहां नेपाल से अधिक चीन की छाप दिखती है। छोटे हवाई पट्टी वाला यह गांव बाहरी दुनिया से हफ्तों पैदल दूरी पर है। राशन खच्चरों या छोटे जहाजों से आता है।
रात के अंधेरे और ऊंचाई की खामोशी में शिव का चिंतन और गूढ़ हो जाता है — वे भूखे-नंगों के देवता हैं, समाज की हर परत में पूज्य हैं, तांडव और सौम्यता का संगम हैं। यह यात्रा केवल भौगोलिक नहीं, आत्मिक रूप से भी पूरी तरह शिवमय हो जाती है।
इस आध्यात्मिक यात्रा का यह चरण मन, शरीर और आत्मा तीनों की परीक्षा का माध्यम बन गया। अगली सुबह एक नए पड़ाव की प्रतीक्षा कर रही थी — शिव के और निकट जाने की…