प्रयागराज, 21 दिसंबर 2025:
त्रिवेणी संगम के तट पर 3 जनवरी से शुरू होने जा रहा माघ मेला 2026 हजारों ग्रामीण परिवारों की आजीविका का बड़ा जरिया भी बन रहा है। माघ मेले की तैयारियों के साथ ही संगम क्षेत्र के आसपास बसे गांवों में रोजगार की गतिविधियां तेज हो गई हैं।
महाकुंभ नगर के अंतर्गत आने वाले गांवों में खासकर ग्रामीण महिलाओं और नाविक समाज के लिए यह मेला नए अवसर लेकर आया है। गोबर के उपले, मिट्टी के चूल्हे और नाव संचालन जैसे पारंपरिक काम एक बार फिर रोजी-रोटी का मजबूत आधार बन रहे हैं। माघ मेला क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 27 गांवों में पशुपालन से जुड़े करीब 15 हजार से अधिक ग्रामीण परिवारों को इस आयोजन से सीधा लाभ मिल रहा है।
गंगा किनारे बसे गांवों में इन दिनों गोबर से बने उपलों का बड़ा बाजार सज गया है। नदी तट पर जगह-जगह उपलों की मंडियां दिखाई देने लगी हैं।
इन गांवों में महिलाएं पूरे दिन उपले बनाने और उन्हें सुखाने में जुटी रहती हैं। बदरा सोनौटी गांव की विमला यादव बताती हैं कि उनके घर में गाय और भैंस हैं, जिनके गोबर से साल भर उपले बनाए जाते हैं। माघ महीने में कल्पवासियों के शिविरों में इनकी अच्छी मांग रहती है, जिससे घर की आमदनी बढ़ जाती है।
मलावा खुर्द गांव की आरती और उनके साथ की महिलाएं इन दिनों मिट्टी के चूल्हे तैयार करने में लगी हैं। आरती बताती हैं कि माघ मेले में कल्पवासियों और साधु-संतों का भोजन इन्हीं चूल्हों पर पकता है। इस बार उन्हें अब तक करीब सात हजार मिट्टी के चूल्हों के ऑर्डर मिल चुके हैं। साधु-संतों के शिविरों में भी पारंपरिक तरीके से बने उपलों और चूल्हों की अच्छी मांग है। इससे गांव की महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल रहा है।
माघ मेले को लेकर नाविक समाज में भी उत्साह साफ नजर आ रहा है। प्रयागराज के निषाद परिवार इस बार ज्यादा संख्या में नावें संगम में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी वजह महाकुंभ 2025 में हुई अच्छी कमाई है। दारागंज स्थित दशाश्वमेध घाट की निषाद बस्ती में रहने वाले बबलू निषाद बताते हैं कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को भी माघ मेले के दौरान काम के लिए बुला लिया है। उनका कहना है कि अगर अनुमान के मुताबिक बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम स्नान के लिए पहुंचे, तो नाविक समाज की आमदनी में बड़ा इजाफा होगा।
मेला प्रशासन द्वारा शिविरों में बिजली के हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडर के इस्तेमाल पर रोक लगाने का भी असर दिखने लगा है। एडीएम मेला दयानंद प्रसाद के अनुसार इस बार माघ मेले में 6 हजार से अधिक संस्थाएं शिविर लगाएंगी, जहां चार लाख से ज्यादा कल्पवासी ठहरेंगे। बड़ी संस्थाएं भले ही बड़े गैस सिलेंडर का उपयोग करती हों, लेकिन साधु-संत, धर्माचार्य और कल्पवासी आज भी परंपरागत तरीके से भोजन बनाना पसंद करते हैं। सुरक्षा कारणों से लगाए गए प्रतिबंधों के चलते अब मिट्टी के चूल्हों और उपलों की मांग और बढ़ गई है।






