बाराबंकी, 18 फरवरी 2025:
यूपी के बाराबंकी जिले में महादेवा स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर लाखों भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थान का दर्जा रखता है। तहसील रामनगर के इस पावन धाम पर महाशिवरात्रि पर्व पर लाखों कांवरिये आते हैं। जलाभिषेक करने के लिए पर्व से पूर्व ही इनकी यात्रा शुरू हो जाती है अब तक हजारों कांवरिये पूजा अर्चना कर लौट चुके है और पहुंचने का सिलसिला जारी है।

महाभारत काल से जुड़ा है शिवलिंग का इतिहास, एटीएस के कमांडोज ने लिया जायजा
महाभारत काल से जुड़ा है शिवलिंग का इतिहास
महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों के लिए महापर्व के समान होता है। लोधेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता है कि इसकी स्थापना पांडव के साथ रहीं मां कुंती ने किया था। यहां स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक की कामना लेकर यूं तो भक्त पूरे साल आते हैं लेकिन महाशिवरात्रि से पूर्व यहां कांवरियों के आने की परम्परा भी धीरे धीरे दशकों पुरानी हो चली है। भारी भीड़ होने के कारण यहां सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए जाते है। मंगलवार को एटीएस के कमांडो के एक दल ने भी यहां आकर जायजा लिया।
बस कंधे बदलते हैं जमीन पर नहीं रखी जाती कांवर
गंगा किनारे बसे यूपी के कई जिलों कानपुर, उरई, बिठूर आदि के साथ अन्य कई क्षेत्रों से लोग कंधे पर रखी जाने वाली कांवर का पूरा श्रृंगार कर उसमें गंगाजल रखते है। पूजा अर्चना की अन्य सामग्री से पवित्र हो जाने वाली कांवर को मंदिर से पूर्व भूमि पर स्पर्श न करने का संकल्प लेकर इनकी पैदल यात्रा शुरू होती है। यही नहीं कांवरिये जलाभिषेक से पूर्व कांवर में किसी बाहरी व्यक्ति का स्पर्श नहीं होने देते।
सैकड़ों किमी पैदल यात्रा कर आते हैं कांवरिये
ये यात्रा सौ दो सौ या चार सौ किलोमीटर की हो बस बम बम भोले का उद्घोष करते हुए जारी रहती है। विश्राम के लिए रुके भी तो जत्थे में कांवर के लिए कंधे बदल जाते है फिर कांवर उसी कंधे पर आ जाती है जो उसे लेकर चला था। बिठूर के रामनरेश कहते है उसके पिता कई बार कांवर लेकर आये इस दफा शरीर साथ नही दे रहा था तो उन्होंने खेती सम्भाल ली और मैंने कांवर उठा ली।
जयकारे से मिट जाती है सफर की थकान
कानपुर के दिलीप कहते है कि हमारे गांव से कई बार महिलाएं तक कांवर लेकर आ चुकी है। बाबा की महिमा है जो मन्नत मांगी वो पूरी हुई जब तक परिवार में कोई सक्षम रहेगा कांवर आती रहेगी। उरई के गोपाल कहते है कि यात्रा कठिन होती है शरीर है तो कष्ट भी होगा लेकिन कष्ट सहने की ताकत भी तो भोलेनाथ ही देते है। इसलिए एक जयकारा लगता है और पैर आगे बढ़ जाते है।