
अंकारा, 15 मई 2025 – आर्मेनियाई नरसंहार, जो 1915 से 1917 तक ऑटोमन साम्राज्य के अधीन हुआ था, इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा सामूहिक हत्या माना जाता है। इस घटना में करीब 15 लाख आर्मेनियाई नागरिकों को निर्दयता से मारा गया था। पुरुषों को खोज-खोजकर मार दिया गया और महिलाओं-बच्चों को भूख, प्यास और यातनाओं के बीच रेगिस्तान में पैदल मार्च कराया गया।
यह नरसंहार उस समय शुरू हुआ जब आर्मेनियाई समुदाय को सोवियत रूस के साथ मिलकर तुर्की के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया गया। ऑटोमन साम्राज्य के अधिकारीयों ने 24 अप्रैल 1915 को हजारों आर्मेनियाई बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार कर दिया, जिससे शुरू हुई व्यापक हत्या-प्रचार की कहानी। इसके बाद पुरुषों को पहले निशाना बनाया गया, उसके बाद महिलाओं और बच्चों के साथ अमानवीय अत्याचार किए गए।
आर्मेनियाई लोग अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के रूप में आर्थिक और सामाजिक रूप से संपन्न थे, जिससे उनके प्रति मुस्लिम बहुल ऑटोमन शासन में असहमति और भय पैदा हो गया था। नरसंहार की यह भयावह घटना विश्व युद्ध के बीच दो साल तक चली, जिसमें गाँव जलाए गए, बलात्कार हुए और हजारों लोग रेगिस्तान की यातनाओं से मारे गए।
विश्व के करीब 36 देशों ने इस घटना को नरसंहार के रूप में मान्यता दी है। अमेरिका ने 2021 में इसे आधिकारिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन तुर्की इस आरोप को अस्वीकार करता है और इसे युद्धकालीन मृत्यु की संज्ञा देता है। तुर्की का कहना है कि आर्मेनियाई रूस के साथ मिलकर साजिश कर रहे थे, और मौतों की संख्या 15 लाख से कम है।
1915 के इस इतिहासिक काले अध्याय को हर साल 24 अप्रैल को याद किया जाता है। आर्मेनिया, जो 1991 में स्वतंत्र हुआ, आज एक शांतिप्रिय राष्ट्र के रूप में विश्व मानचित्र पर है। यह नरसंहार आज भी इतिहास के पन्नों में इंसानियत के खिलाफ एक भयंकर कृत्य के रूप में याद किया जाता है।