नई दिल्ली, 25 जून 2025
उच्चतम न्यायालय ने दहेज हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए सेना के एक कमांडो को दो सप्ताह के भीतर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हुए कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर में भाग लेने के कारण किए गए अत्याचार अपराधी को छूट नहीं देते हैं।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दहेज उत्पीड़न के कारण पत्नी की मौत के मामले में दोषी की अपील को खारिज कर दिया और उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम चौधरी ने कहा, “मैं केवल एक पंक्ति कह सकता हूं कि मैंने ऑपरेशन सिंदूर में भाग लिया था और पिछले 20 वर्षों से राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो के रूप में काम किया है।”
अदालत ने आरोपी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में भाग लेने के कारण किया गया अपराध उसे छूट नहीं देता। बल्कि, यह दर्शाता है कि आप शारीरिक रूप से कितने फिट हैं। जिस तरह से आपने अपनी पत्नी को मारा, उससे ही यह पता चलता है। उन्होंने कहा, “यह छूट का मामला नहीं है। यह एक जघन्य कृत्य है। छूट तब लागू होती है जब सजा एक साल से कम हो।”
न्यायमूर्ति चंद्रन ने यह देखते हुए कि उच्च न्यायालय पहले ही याचिकाकर्ता की अपील खारिज कर चुका है, वकील को याद दिलाया, “आप यहां विशेष अवकाश पर हैं।”
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी कर प्रतिवादियों से छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।जुलाई 2004 में अमृतसर की ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता बलजिंदर सिंह को आईपीसी की धारा 304-बी (दहेज हत्या) के तहत दोषी ठहराया था।