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सीएम योगी के बुलडोजर न्याय पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- आश्रय का अधिकार मौलिक, घर तोड़ना अमानवीय

नई दिल्ली,7 अप्रैल 2025

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बुलडोजर न्याय’ एक बार फिर चर्चा में है। वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपने लेख में इसे संविधान के खिलाफ बताया है। उन्होंने लिखा कि पिछले हफ्ते एक अखबार के पहले पन्ने पर एक छोटी लड़की की तस्वीर छपी, जो अपने स्कूल की किताबें बचाने की कोशिश कर रही थी, जबकि उसका घर बुलडोजर से तोड़ा जा रहा था। यह तस्वीर देखकर शर्म, दुख और गुस्सा आता है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यही न्याय है, जिसे ‘बुलडोजर बाबा’ कहे जाने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ सही मानते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि इस तरह घरों को तोड़ना न केवल अमानवीय है, बल्कि गैरकानूनी भी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आश्रय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। प्रयागराज नगर निगम को आदेश दिया गया है कि जिनके घर बिना नोटिस के तोड़े गए, उन्हें 10 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए। कोर्ट का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब न्यायपालिका पर जनता का भरोसा डगमगाया हुआ था, खासकर उस घटना के बाद जब जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से आधे जले हुए 500 रुपये के नोट मिले थे।

तवलीन सिंह ने अपने लेख में न्याय व्यवस्था की जमीनी हकीकत को उजागर करते हुए लिखा कि निचली अदालतों में आम आदमी को न्याय मिलना बेहद मुश्किल है। वहां गंदगी, अव्यवस्था और महंगे वकील आम जनता के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं। उन्होंने कहा कि आम नागरिक मजबूरी में ही अदालत का रुख करता है क्योंकि वहां समय और धन दोनों की भारी कीमत चुकानी पड़ती है। हत्या, रेप, ड्रग्स और आतंकवाद जैसे मामले भी अदालतों में इतने लंबे चलते हैं कि लोग उन्हें भूल जाते हैं। इसी निराशा के कारण सोशल मीडिया पर कई लोग बुलडोजर से की गई कार्रवाई को समर्थन देते हैं।

प्रयागराज में जिनके घर तोड़े गए, योगी सरकार का दावा था कि वे मकान एक गैंगस्टर की जमीन पर बने थे। लेकिन लेख में कहा गया है कि गैंगस्टर को भी कोर्ट में सुनवाई का अधिकार है और बिना प्रक्रिया के सजा देना कानून का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय है, लेकिन जस्टिस वर्मा के विवाद के बाद न्याय व्यवस्था में सुधार की जरूरत और भी जरूरी हो गई है। निचली अदालतों की हालत चिंताजनक है, जहां जज फाइलों के ढेर में और जानवरों के बीच बैठकर काम करते हैं।

लेख के अनुसार, प्रयागराज के पीड़ितों का सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना अपने आप में एक चमत्कार है। उन्हें इंसाफ पाने में पांच साल लग गए और घर दोबारा बनाने के लिए उनके पास पैसा नहीं बचा। फिर भी उनका अदालत तक पहुंचना न्याय व्यवस्था की उम्मीद को ज़िंदा रखता है। सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह ऐसे मुख्यमंत्रियों पर सख्त कार्रवाई करे, जो बुलडोजर को न्याय का रास्ता मानते हैं। कम से कम उनके खिलाफ अवमानना का केस तो बनता है। देश की न्याय प्रणाली को तेज, सुलभ और सस्ता बनाना अब अनिवार्य हो गया है।

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