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लखनऊ की हवा में घुला जहर! इस रिपोर्ट ने खोली राजधानी की हवा की सच्चाई

लखनऊ की हवा में अब ज़हर घुल चुका है। IITR की रिपोर्ट बताती है कि गोमतीनगर, आलमबाग और अमौसी जैसे इलाके धूल और धुएं से ढके हैं, जहां हर सांस लेना सेहत के लिए खतरा बन गया है।

लखनऊ, 13 नवंबर 2025 :

लखनऊ की फिज़ा में अब खुशबू नहीं, धुआं और धूल घुल चुकी है। कभी नवाबी शहर की पहचान खुशबू और हरियाली से होती थी, लेकिन अब यहां की फिज़ा धुएं और धूल से भर गई है। हालात ये हैं कि गोमती नगर जैसे वीआईपी इलाकों में भी सांस लेना मुश्किल हो गया है। 10 नवंबर को राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 350 तक पहुंच गया। यानी हवा इतनी खराब कि हर सांस लेना 10 सिगरेट पीने के बराबर हो गया है।

भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (IITR) की ताज़ा रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि राजधानी के कई इलाके ज़हरीली हवा में डूबे हुए हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि गोमतीनगर जैसे हाई-फाई इलाके से लेकर अमौसी के इंडस्ट्रियल एरिया तक, हवा सांस लेने लायक नहीं बची।

कहां सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला है?

IITR की टीम ने लखनऊ के कुल नौ इलाकों में हवा की गुणवत्ता जांची। इनमें चार आवासीय, चार व्यावसायिक और एक औद्योगिक क्षेत्र शामिल थे।

आवासीय इलाकों में गोमतीनगर सबसे प्रदूषित पाया गया।

व्यावसायिक क्षेत्रों में आलमबाग सबसे आगे निकला।

औद्योगिक क्षेत्रों में अमौसी की हवा सबसे खराब मिली।

कैसे निकले डराने वाले आंकड़े

Air Pollution in Lucknow
Air Pollution in Lucknow

रिपोर्ट के मुताबिक:

गोमतीनगर में PM-10 का स्तर 104.5 और PM-2.5 का 63.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पाया गया।

आलमबाग में PM-10 125.2 और PM-2.5 84.8 दर्ज हुआ।

अमौसी की हवा सबसे जहरीली निकली, जहां PM-10 141.3 और PM-2.5 133.8 तक पहुंच गया।

जबकि, राष्ट्रीय मानक बताते हैं कि PM-10 की सीमा 100 और PM-2.5 की 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। यानी लखनऊ की हवा अब भी मध्यम प्रदूषित श्रेणी में है, पर लगातार बिगड़ती जा रही है।

गैस कम लेकिन शोर ज्यादा

रिपोर्ट में राहत की बात यह रही कि सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) जैसे गैसीय प्रदूषक सामान्य सीमा में हैं। लेकिन परेशानी का नया चेहरा ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) बन गया है। शहर के कई इलाकों में शोर का स्तर तय सीमा से कई गुना अधिक पाया गया।

बारिश बनी मददगार, सरकार की पहल भी असरदार

IITR के वैज्ञानिकों ने बताया कि इस बार मानसून ने राहत दी। ज्यादा बारिश और नमी ने हवा में फैली धूल को नीचे बैठाने में मदद की। इसके अलावा, सरकार की Clean Air Plan और स्वच्छ ईंधन नीति का असर भी देखने को मिला।

CNG और EV बसों की संख्या बढ़ी

मेट्रो कनेक्टिविटी और फ्लाईओवर के कारण ट्रैफिक का दबाव घटा

कंस्ट्रक्शन गतिविधियों में कमी से भी धूल के स्तर में गिरावट आई

अब भी अलर्ट पर रहना जरूरी

हालांकि हवा में थोड़ा सुधार दिखा है, लेकिन यह राहत अस्थायी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर निर्माण कार्य, ट्रैफिक और खुले में कचरा जलाने पर सख्ती नहीं हुई, तो सर्दियों में हालात और खराब हो सकते हैं।

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