
दिल्ली, 17 अप्रैल 2025
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को एक अहम बयान में न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 के उपयोग को लेकर चिंता जताते हुए इसे ‘न्यायपालिका की न्यूक्लियर मिसाइल’ करार दिया। उनका कहना है कि इस प्रावधान का उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए किया जा रहा है।
धनखड़ ने कहा कि देश ने ऐसा लोकतंत्र नहीं चाहा था, जिसमें न्यायपालिका खुद कानून बनाए, कार्यपालिका की भूमिका निभाए और एक ‘सुपर संसद’ की तरह काम करे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश देने के संदर्भ में उन्होंने यह चिंता जाहिर की।
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह “पूर्ण न्याय” के हित में कोई भी आदेश पारित कर सकता है। हालांकि, उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस शक्ति का उपयोग करते हुए संविधान में परिवर्तन नहीं किया जा सकता, केवल व्याख्या की जा सकती है।
धनखड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति की शपथ संविधान की रक्षा, सुरक्षा और संरक्षण के लिए होती है और उन्हें प्रक्रियागत निर्देश नहीं दिए जा सकते। उन्होंने कहा कि यदि संविधान में कोई निर्वात (vacuum) होता है तो उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है, लेकिन न्यायपालिका नया रूप नहीं दे सकती।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के हस्तक्षेप लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ हैं और यह प्रक्रिया की पारदर्शिता और संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने न्यायपालिका से अधिक संवेदनशील और संतुलित व्यवहार की अपेक्षा जताई।
यह बयान देश में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन को लेकर एक नई बहस को जन्म दे सकता है।






