
प्रयागराज,10 फरवरी 2025
7वीं सदी में जब सम्राट हर्षवर्धन का शासन था, तब भारत आए चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग ने अपने संस्मरणों में नागा साधुओं और अघोरियों का उल्लेख किया था। उन्होंने लिखा कि उत्तर-पश्चिमी भारत में बौद्ध लोग ऐसे तपस्वियों के साथ रहते थे, जो नग्न रहते और अपने शरीर पर राख मलते थे। कुछ साधु सिर पर हड्डियों की मालाएं पहनते थे, हालांकि ह्वेन त्सांग ने इन्हें कोई विशेष नाम नहीं दिया। उसी दौर में महाराजा हर्ष ने प्रयाग में एक धर्म परिषद का आयोजन किया था। आज भी, कुंभ जैसे आयोजनों में नागा साधु और अघोरी अपनी परंपरा को जीवंत रखते हैं। हाल ही में, प्रयागराज के महाकुंभ में नागा साधुओं ने तीनों प्रमुख अमृत स्नान कर लिए हैं, जिसके बाद वे अपने अगले पड़ाव की ओर निकल पड़े हैं। कुछ नागा साधु और अघोरी पहले ही प्रयागराज से प्रस्थान कर चुके हैं, जबकि कुछ वसंत पंचमी के बाद रवाना हुए। अब इन साधुओं का अगला पड़ाव काशी विश्वनाथ होगा, जहां महाशिवरात्रि तक वे ठहरेंगे। 26 फरवरी को काशी में ये साधु शोभायात्रा निकालेंगे, मसाने की होली खेलेंगे और गंगा स्नान करने के बाद अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाएंगे।
नागा साधुओं के लिए कुंभ का विशेष महत्व है, क्योंकि वे एक सैन्य पंथ से जुड़े होते हैं और उनकी जीवनशैली एक अनुशासित सैन्य रेजीमेंट जैसी होती है। वे त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम के जरिए अपनी परंपरा को प्रदर्शित करते हैं। सामान्य जीवन से दूर, ये साधु जंगलों और पहाड़ों में कठोर तपस्या करते हैं और जब कुंभ या माघ मेले का आयोजन होता है, तो वे अमृत स्नान के लिए निकल पड़ते हैं। मान्यता है कि अमृत स्नान करने से साधुओं को एक हजार अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। महाकुंभ में स्नान के बाद ये साधु एक बार फिर ध्यान और साधना में लीन हो जाते हैं। आखिरी स्नान के बाद वे अपने गुप्त स्थलों पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। अगला महाकुंभ 2169 में प्रयागराज में होगा, जबकि 2027 में हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होगा, जहां हजारों नागा साधु दोबारा एकत्रित होंगे। नागा साधु और अघोरी अपने रहस्यमयी जीवन के लिए जाने जाते हैं, जो आमतौर पर अपनी पहचान छिपाकर तपस्या करते हैं। वे हिमालय की गुफाओं, वाराणसी, प्रयागराज, उज्जैन और हरिद्वार में रहते हैं और समाज से दूर रहकर साधना में लीन रहते हैं।






