
नई दिल्ली, 21 अगस्त 2025
हिंदू धर्म में हर देवी-देवता का अपना महत्व है, लेकिन कुछ शक्तियां ऐसी हैं जिनके बिना धार्मिक अनुष्ठान अधूरे माने जाते हैं. ऐसी ही एक शक्ति हैं देवी स्वाहा, जिनका नाम हर यज्ञ, हवन और अग्निकर्म के दौरान अनिवार्य रूप से लिया जाता है. बिना “स्वाहा” उच्चारण के कोई भी आहुति देवताओं तक नहीं पहुंचती.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी स्वाहा को अग्निदेव की पत्नी माना गया है. वेद और पुराणों में उनका उल्लेख मिलता है. ‘स्वाहा’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है– ‘सु’ (अच्छा या भली-भांति) और ‘आह’ (आह्वान करना). इसका अर्थ है “अच्छी तरह से पहुंचाया गया”. यानी अग्नि में डाली गई आहुति उनके माध्यम से देवताओं तक सही ढंग से पहुंचती है. कुछ मान्यताओं के अनुसार, वे दक्ष प्रजापति की पुत्री भी मानी जाती हैं.
यज्ञ और हवन में जब आहुति दी जाती है तो मंत्रों के अंत में ‘स्वाहा’ बोलना आवश्यक है. यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि विश्वास है कि देवी स्वाहा ही देवताओं तक आहुति पहुंचाने का माध्यम हैं. उनके बिना मंत्र अपूर्ण और यज्ञ निष्फल माना जाता है.
वैदिक काल में यज्ञ को देवताओं को भोजन अर्पित करने का माध्यम माना गया. आहुति के साथ “स्वाहा” कहने से वह देवताओं तक पहुंचती है और अग्निदेव प्रसन्न होते हैं. इसी कारण हर हवन में ‘स्वाहा’ का उच्चारण अनिवार्य है.
आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसका महत्व है. ‘स्वाहा’ का उच्चारण करते हुए व्यक्ति अपने अहंकार का त्याग कर समर्पण की भावना प्रकट करता है. यह दर्शाता है कि अर्पित की गई वस्तु किसी उच्च शक्ति को समर्पित है.
इस प्रकार देवी स्वाहा केवल एक शब्द की प्रतीक नहीं, बल्कि मानव और देवताओं के बीच सेतु मानी जाती हैं. उनके बिना कोई भी यज्ञ अधूरा और व्यर्थ समझा जाता है.