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नेहरू क्यों चाहते थे चीफ जस्टिस कानिया का इस्तीफा, पटेल ने कैसे बदला फैसला?

नई दिल्ली,22 अप्रैल 2025

भारत की आज़ादी के बाद लोकतंत्र की नींव रखी जा रही थी, उसी दौर में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तनाव का एक बड़ा किस्सा सामने आया था। यह मामला देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हरिलाल जेसिकदास कानिया के बीच मतभेद का था। नेहरू इस हद तक खिन्न हो गए थे कि उन्होंने चीफ जस्टिस से इस्तीफा मांगने का मन बना लिया था। हालांकि, तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के हस्तक्षेप ने स्थिति को संभाल लिया।

जस्टिस कानिया ने 28 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के तुरंत बाद भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला था। इससे पहले वे फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया के चीफ जस्टिस थे। उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पक्ष में कई बार खुलकर विचार रखे थे। 1948 में एक रात्रिभोज के दौरान उन्होंने नेहरू से पूर्वी पंजाब हाईकोर्ट की नियुक्तियों में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप पर चिंता जताई थी।

विवाद तब और गहराया जब केंद्र सरकार ने जस्टिस बशीर अहमद का नाम मद्रास हाईकोर्ट के स्थायी जज के लिए भेजा और जस्टिस कानिया ने उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। फाइल जब प्रधानमंत्री नेहरू के पास पहुंची, तो उन्होंने इसे ‘गलत व्यवहार’ बताते हुए जस्टिस कानिया को चीफ जस्टिस पद के लिए अनुपयुक्त ठहरा दिया। नेहरू ने गवर्नर जनरल राजा गोपालाचारी से चर्चा कर इस पर सहमति ली और 23 जनवरी 1950 को सरदार पटेल को पत्र लिखकर कानिया से इस्तीफा मांगने की बात कही।

पटेल ने उसी दिन नेहरू को उत्तर देते हुए सलाह दी कि कानिया के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए। उन्होंने जस्टिस बशीर अहमद की नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ा दी और जस्टिस कानिया को समझा दिया। उन्होंने नेहरू को आगाह किया कि अगर कानिया इस्तीफा नहीं देते तो सरकार की प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा और न्यायपालिका में हस्तक्षेप का आरोप लगेगा। पटेल ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की कुछ असावधानियों को सहना ही पड़ेगा।

पटेल ने स्पष्ट किया कि अगर कानिया ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया तो सरकार उसे पद से हटा भी नहीं सकती। ऐसे में नेहरू ने पटेल की सलाह मानी और यह विवाद यहीं शांत हो गया। इस किस्से ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय लोकतंत्र की नींव में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर कितनी सतर्कता और संवेदनशीलता बरती गई थी।

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