अंशुल मौर्य
वाराणसी, 22 जून 2025:
यूपी की शिवनगरी काशी के साथ जब देश दुनिया योग दिवस के जोश में डूबी रही तब योग की जन्मभूमि काशी का ”नागकूप’ सन्नाटे से घिरा रहा। यह वही पवित्र स्थल है, जहां महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र की रचना की थी। आज यह ऐतिहासिक धरोहर सरकारी उदासीनता और लापरवाही की चपेट में है। योग दिवस पर यहां न कोई सरकारी आयोजन नहीं हुआ न कोई जनप्रतिनिधि महर्षि को नमन करने पहुंचा।
स्कंद पुराण में है स्थान का उल्लेख, महर्षि पतंजलि की है तपोभूमि
काशी के जैतपुरा में स्थित नागकूप वह स्थान है, जहाँ महर्षि पतंजलि ने गहन तपस्या कर भगवान शिव के लिए 80 फीट गहरे शिवलिंग की स्थापना की थी। यहीं से उन्होंने योग को सूत्रबद्ध कर दुनिया को अमूल्य ज्ञान दिया। स्कंदपुराण के काशीखण्ड में इसे ‘कारकोटक वापी’ कहा गया है, जो सर्पराज कारकोटक की तपस्या और पाताल गमन का मार्ग माना जाता है। यह स्थल न केवल योग का उद्गम है, बल्कि महान व्याकरणाचार्य पाणिनि और उनके शिष्य पतंजलि की कर्मभूमि भी है।
योग को मिला वैश्विक मंच लेकिन यहां न सरकारी आयोजन दिखा न कोई जनप्रतिनिधि
योग को वैश्विक मंच पर ले जाने वाली सरकारों के लिए यह स्थान केवल चुनावी रैलियों तक सिमटकर रह गया है। न योग दिवस पर यहाँ कोई सरकारी आयोजन हुआ, न ही किसी जनप्रतिनिधि ने इसकी सुध ली। गंदगी और अव्यवस्था के बीच यह पवित्र स्थल अपनी गरिमा खोता जा रहा है।
विशेषज्ञ बोले…विश्व धरोहर बने नागकूप
स्थानीय निवासियों का कहना है, “जब पूरी दुनिया योग की बात करती है, तब इसके जन्मस्थल की यह हालत दुखद है। नागकूप केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत के वैदिक ज्ञान, आयुर्वेद, व्याकरण और योग की अमूल्य धरोहर है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थल को संरक्षित कर इसे विश्व धरोहर के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।