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जेल के भीतर डिप्रेशन में उद्योगपति ने थामा गीता का दामन, बन गए परमधाम के बाबा राधेश्याम

अमित मिश्र

प्रयागराज, 25 फरवरी 2025:

यूपी के तीर्थराज प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में मोह माया से दूर साधु संतों की जीवन यात्रा तमाम अचरजों से भरी है। ऐसे ही बाबा राधेश्याम हैं। परमधाम संस्था के मुखिया राधेश्याम कभी लग्जरी लाइफ जीते थे। 800 करोड़ अभी खातों में सीज पड़े हैं। बिजनेस में घपले किये किसी ने और उन्हें जेल जाना पड़ा। एक तंग बैरक में साढ़े चार साल गुजारे डिप्रेशन में सुसाइड की ओर बढ़ रहा था तभी श्रीकृष्ण की गीता मिल गई और जीवन ही बदल गया।

जीवन यात्रा को साझा कर बोले, कहा- शून्य से शून्य तक का सफर है जीवन

जेल की बैरिक से निकलकर परमधाम तक की यात्रा को साझा करते हुए बाबा राधेश्याम कहते हैं। वो एक शून्य हैं और जीवन भी शून्य से शून्य की यात्रा है। हरियाणा में अपने जन्म का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि दो सितंबर 1985 को मेरा जन्म हुआ लेकिन एक सितंबर कैलेंडर की ऐसी तारीख थी जब मेरा कोई वजूद नहीं था और एक तारीख ऐसी होगी जब मेरा कोई अस्तित्व नहीं होगा। इस बीच मैं दृश्य रूप में दिख रहा हूं फिर अदृश्य में चला जाऊंगा। आज परमधाम के जरिये मेरे साथ लाखों लोग जुड़े हैं। जो पहले साथ थे वो लालच के कारण थे।

कहा- गीता की वजह से जिंदा हूं इसलिए आने वाली पीढ़ी को समझा रहे हैं गीता का मर्म

बाबा राधेश्याम ने बताया कि उनका 1200 करोड़ का बिजनेस था। लगभग 400 लोग कम्पनी में थे। 14-15 घण्टे फ्लाइट में बीतते थे फाइव स्टार होटलों में रुकता था। कम्पनी में कुछ घपलेबाजी हुई और मुझे जेल जाना पड़ा। जेल के भीतर रहकर सच का पता चला कि मेरा तो कुछ नहीं है। बंदियों के साथ रहकर काफी कष्ट भोगे डिप्रेशन ने घेर लिया और किसी भी तरह अपनी जान देने के बारे में सोचने लगा। इसी दौरान मुझे श्रीकृष्ण की गीता मिल गई। उसे पढा आज उसी गीता की वजह से ही जिंदा हूं और आने वाली पीढ़ी को भी डिप्रेशन से बाहर लाने का प्रयास कर रहा हूं।

मुक्ति के लिए मन को साफ करना होगा

वो कहते हैं कि हम यात्रा करके जाएंगे तो धाम मिलेगा और जहां बैठे हैं वहां विचार शून्य होकर आंखे बंद कर लें तो परमधाम मिलेगा।मैंने गीता परम् रहस्यम यात्रा मुक्ति की ओर एक किताब भी लिखी है। मैं महाकुंभ में नहाने के लिए नहीं लोगों को जगाने आया हूं। शरीर पाप नहीं करता मन करता है मन को धो लो अंदर ही तो गंगा बह रही है। यहां जो श्रद्धा के साथ शरीर संग मन से डुबकी लगाकर जाएगा वो मुक्त हो जाएगा। प्रेम के बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

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