
नई दिल्ली, 21 मई 2025
देश मे पिछले दिनों सामने आए जज के घर पर मिले कैश कांड में अब सुप्रीम कोर्ट ने FIR वाली मांग में सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। इस मामले में आज सुनवाई होगी। बता दे कि 14 मार्च को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के अपने बंगले से जुड़े स्टोररूम में कथित तौर पर जली हुई नकदी का एक बड़ा ढेर बरामद हुआ था जिसके बाद वो विवाद में फंसे गए थे। यह घटना उस समय घटी थी, जब अग्निशमन दल वहां आग बुझाने गया था। सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ अब इस मामले में आज सुनवाई करेगी। सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मुख्य याचिकाकर्ता अधिवक्ता मैथ्यूज जे. नेदुम्परा से कहा कि सर्वोच्च न्यायालय 20 मई को याचिका पर सुनवाई कर सकता है।
नेदुम्परा द्वारा यह प्रस्तुत किये जाने के बाद कि वे मंगलवार को उपलब्ध नहीं होंगे, मुख्य न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को 21 मई को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
पिछले सप्ताह मुख्य न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिना बारी के सुनवाई करने से इनकार करते हुए नेदुम्परा से कहा था कि वे “उल्लेख प्रक्रिया” का पालन करें, जिसके तहत याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को ईमेल भेजना आवश्यक है।
याचिका में कहा गया है कि यदि न्यायमूर्ति वर्मा ने भ्रष्ट तरीकों से धन संचय करने का अपराध किया है तो केवल महाभियोग पर्याप्त नहीं होगा। याचिका में उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है, “जो कुछ हुआ है, वह सार्वजनिक न्याय के खिलाफ एक गंभीर अपराध है। जब न्याय का रक्षक, न्यायाधीश ही आरोपी या अपराधी हो, तो यह कोई साधारण अपराध नहीं है, इसकी गंभीरता कहीं अधिक है, और इसलिए सजा भी उतनी ही होनी चाहिए। यह जरूरी है कि आपराधिक कानून को लागू किया जाए, मामले की गहन जांच की जाए, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह पता लगाया जाए कि रिश्वत देने वाले/लाभार्थी कौन थे और वह कारण/निर्णय क्या था जिसके तहत न्याय खरीदा गया।”
याचिका में कहा गया है, “इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि जलाई गई और आंशिक रूप से जलाई गई तथा गुप्त रूप से निकाली गई भारी मात्रा में धनराशि रिश्वत/भ्रष्टाचार के अलावा और कुछ नहीं थी – जो भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। इस बात का कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं है कि कोई एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई और आपराधिक कानून क्यों नहीं लागू किया गया, जिसका मतलब होता कि अपराध स्थल की पहचान करके मुद्रा नोटों को जब्त करना, संदिग्धों की गिरफ्तारी आदि।”
मार्च के अंतिम सप्ताह में न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति भुयान की पीठ ने उन्हीं याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर एक अन्य याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और नकदी बरामदगी के आरोपों की प्रभावी और सार्थक जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
पीठ ने तब टिप्पणी की थी, “‘इन-हाउस’ जांच जारी है। यदि रिपोर्ट में कुछ गलत पाया जाता है, तो एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया जा सकता है, या मामले को संसद को भेजा जा सकता है। आज (एफआईआर दर्ज करने पर) विचार करने का समय नहीं है।”
14 मार्च को ही एफआईआर दर्ज न किए जाने पर सवाल उठाते हुए, जिस दिन कथित तौर पर बेहिसाबी नकदी बरामद हुई थी, याचिका में कहा गया है कि संबंधित अधिकारियों की ओर से जनता को इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड उपलब्ध कराने में की गई देरी से यह निष्कर्ष निकलता है कि जो कुछ हो रहा था वह मामले को छिपाने का एक प्रयास था।
कथित नकदी बरामदगी के बाद, जिसने न्यायिक गलियारों में हलचल मचा दी थी, तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ जांच करने के लिए 3 सदस्यीय समिति गठित की थी। आंतरिक जांच के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पहले सिफारिश की थी कि केंद्र न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजे।
इस महीने की शुरुआत में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 8 मई को जारी एक प्रेस बयान में कहा गया, “भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इन-हाउस प्रक्रिया के संदर्भ में भारत के माननीय राष्ट्रपति और भारत के माननीय प्रधान मंत्री को पत्र लिखा है, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से प्राप्त दिनांक 06.05.2025 के पत्र/प्रतिक्रिया के साथ दिनांक 03.05.2025 की तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट की प्रति संलग्न है।”






