
दिल्ली, 19 अगस्त
1526 में इब्राहिम लोदी पर जीत दर्ज करने के बाद बाबर ने जब दिल्ली की गद्दी संभाली, तो हिंदुस्तान की अनोखी खूबियों ने उसे मोह लिया। उसके साथी अपने वतन की याद में डूबे रहते थे, लेकिन बाबर यहां टिककर एक स्थायी सल्तनत कायम करने का निश्चय कर चुका था।
अपनी आत्मकथा “बाबरनामा” में उसने लिखा कि हिंदुस्तान का विशाल भूभाग, विविध संस्कृतियां, नदियां, खेत-खलिहान, अनगिनत फल और जानवर उसे हैरत में डालते थे।
नदियां, बरसात और बेशुमार उपज
बाबर ने गंगा, यमुना, चंबल, सतलज जैसी नदियों का जिक्र किया और लिखा कि इतनी उपजाऊ जमीन और बारिश कहीं और नहीं देखी। उसे हैरानी हुई कि यहां बिना नहरों के भी अच्छी खेती हो जाती है।
मछलियां और आम बने पसंदीदा
बाबर हिंदुस्तान की मछलियों पर फिदा हो गया। उसके मुताबिक इनका स्वाद लाजवाब था और इनमें गंध नहीं थी। आम को उसने हिंदुस्तान का सबसे बेहतरीन फल बताया और खाने के अनोखे तरीके का भी जिक्र किया।
समय मापने का अनोखा तरीका
बाबर ने यहां की घड़ियाल प्रणाली पर आश्चर्य जताया। पहर और घड़ियों के हिसाब से समय का बंटवारा और पानी से चलने वाली व्यवस्था उसे दिलचस्प लगी।
अच्छाइयों के साथ कमियां भी
बाबर ने माना कि यहां के लोग तौर-तरीकों और अदब में कमजोर हैं, न उम्दा घोड़े हैं न अच्छी शराब। बाजारों में भी उसे मनपसंद खानपान नहीं मिला।
फिर भी लुभाता रहा हिंदुस्तान
कमियों के बावजूद बरसात की ठंडी हवाएं, हर पेशे में निपुण कारीगर, गिनती और तौल की सटीक व्यवस्था और सोना-चांदी की प्रचुरता ने बाबर को यहां रुकने का कारण दिया। उसकी नजर में हिंदुस्तान सिर्फ लूट का ठिकाना नहीं, बल्कि आने वाली नस्लों के लिए मालामाल और टिकाऊ सल्तनत की नींव था।