Uttar Pradesh

गोरखनाथ मंदिर : सत्संग में जुटे श्रद्धालु, कथा व्यास बोले…जप से अधिक प्रभु स्मरण प्रभावी

हरेंद्र दुबे

गोरखपुर, 7 सितंबर 2025 :

यूपी के गोरखपुर जिला मुख्यालय स्थित महंत दिग्विजय नाथ व ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की पुण्य तिथि के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में भारी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं। व्यास पीठ पर विराजमान गोपाल मंदिर अयोध्या धाम के जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी राम दिनेशाचार्य महाराज ने कहा कि इस संसार में न सुख स्थाई न दुख स्थाई है। प्रभु नाम के जप से अधिक उनके नाम का स्मरण का प्रभाव अधिक होता है क्योंकि स्मरण किसी भी परिस्थित में, कभी भी किया जा सकता है।

कथा व्यास ने आगे कहा कि अपने ईष्ट का स्मरण ही हमें मोक्ष प्रदान करेगा। इस पृथ्वी पर जो भी आया है उसे मरना ही है इसलिए मरने की चिंता न करके मन को भगवान के चरण में लगाना चाहिए ताकि जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाए। बार बार जन्म लेने का कारण हमारी कामनाएं है इसलिए इस जन्म में जो कामनाएं नहीं पूर्ण होती है तो उसके लिए जीव को दुबारा जन्म लेना पड़ता है । प्रभु भक्ति से ही हमारी सभी सांसारिक कामनाएं नष्ट हो जाती है। जीवन की सद्गति के लिए सत्संग की आवश्यकता है। जिस व्यक्ति को भूख एवं प्यास सहन न हो पाये और क्रोधित हो जाए तो उसके उपर कलयुग अधिक सवार हो जाता है। यदि कोई गलती या अपराध हो जाये तो उसे हमे स्वीकार कर लेना चाहिए और भगवान हमारे गलती को सुधारने के लिए तत्पर हो जाते हैं।

कथा व्यास ने कहा वक्ता होना कठिन नही है श्रोता होना कठिन है। क्योंकि कोई श्रोता किसी की कथा सुन कर जीवन को मुक्त करता है। ऐसे परीक्षित महाराज हैं। वे इतने अच्छे श्रोता है कि स्वयं भगवान् सुकदेव कथा सुनाने अपने आप उनके पास पहुंच जाते जाते हैं। किसी साधु का चित्त में केवल स्मरण हो जाए तो जीवन में सुधार हो जाएगा।

उन्होंने भजन “अर्थ चाहिए न धर्म काम चाहिए, कौशल्या कुमार मुझे राम चाहिए ” गाकर भक्ति के रस को सर्वश्रेष्ठ बताया। कथा व्यास ने कहा कि जैसे मिट्टी से बने बर्तन नष्ट होकर पुनः मिट्टी बन जाते हैं उसी प्रकार परमात्मा से उत्पन्न सभी जीवात्मा मुक्त होने पर परमात्मा में मिल जाते हैं। बर्तन बनाने से पहले तथा टूटने के बाद जैसे मिट्टी ही रहती है उसी प्रकार सृष्टि होने के पूर्व भी परमात्मा ही था और सृष्टि के प्रलय होने पर भी परमात्मा की ही सत्ता रहती है। यही सनातन सत्य है। कथा का समापन आरती और प्रसाद वितरण से हुआ।

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