लखनऊ, 8 नवंबर 2025:
जब किसी व्यक्ति की पहचान उसकी पार्टी या पद से आगे निकल जाए, तो समझिए उसने इतिहास में अपनी जगह बना ली है। लालकृष्ण आडवाणी भी ऐसे ही व्यक्तित्व हैं- एक ऐसा नाम जिसने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी, जिसने विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाया, और जिसने देशभक्ति को अपने जीवन का पर्याय बना लिया। विभाजन की वे पीड़ादायक यादें, किशोर उम्र में देश के लिए समर्पण का व्रत और सियासत में सादगी के साथ दृढ़ता- यही है आडवाणी की कहानी, जो आज भी प्रेरणा देती है। उनके जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश के कई बड़े नेताओं ने उन्हे बधाई दी। आज वह 98 साल के हो गए हैं और उनकी कहानी देश के हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है जो राजनीति को सेवा का माध्यम मानता है।
सिंध से शुरू हुआ सफर
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को सिंध प्रांत में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल से पढ़ाई की। बचपन से ही देशभक्ति उनके दिल में बस गई थी। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़कर देशसेवा की राह पकड़ ली थी।
विभाजन की पीड़ा और नया संकल्प
1947 का साल उनके जीवन में गहरी छाप छोड़ गया। जब देश आजाद हुआ, उसी वक्त उन्हें अपना घर छोड़कर भारत आना पड़ा। लेकिन उन्होंने उस दर्द को अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने तय किया कि अब अपनी पूरी जिंदगी इस देश को एकसूत्र में बांधने के लिए समर्पित करेंगे। राजस्थान में आकर वे आरएसएस प्रचारक बने और संगठन को मजबूत करने में जुट गए।
जनसंघ से बीजेपी तक का सफर
आडवाणी ने जनसंघ के दौर से ही राजनीति में अहम भूमिका निभाई। आपातकाल के बाद उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर 1980 में बीजेपी की नींव रखी। पार्टी को नई पहचान देने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिए। 1984 में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं, लेकिन 1998 तक यही पार्टी 182 सीटों के साथ सत्ता में आ गई। यह आडवाणी की रणनीति, मेहनत और नेतृत्व का नतीजा था।
पहला लोकसभा चुनाव और यादगार मुकाबला
आडवाणी ने 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और नई दिल्ली सीट से जीत हासिल की। 1991 में उन्होंने दो सीटों से चुनाव लड़ा-दिल्ली और गांधीनगर। नई दिल्ली में उनका मुकाबला बॉलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना से हुआ। यह चुनाव देशभर में चर्चा का विषय बना। नतीजा बेहद करीब रहा और आडवाणी सिर्फ 1589 वोटों से जीते। उन्होंने बाद में गांधीनगर सीट रखी, जिसे वे वर्षों तक संभालते रहे।
बीजेपी के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष
1980 से 2005 तक कई बार बीजेपी के अध्यक्ष रहे आडवाणी ने पार्टी को जमीनी स्तर पर फैलाया। उन्होंने संगठन को मजबूत किया, नए नेताओं को मौका दिया और पार्टी को वैचारिक रूप से सशक्त बनाया। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने 2 सीटों से लेकर 182 सीटों तक का सफर तय किया।
गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में अहम भूमिका
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में आडवाणी ने गृह मंत्री और बाद में उपप्रधानमंत्री के रूप में देश की सुरक्षा और प्रशासन में बड़ा योगदान दिया। पोखरण परमाणु परीक्षण, लाहौर बस यात्रा, कारगिल युद्ध, आतंकवाद विरोधी कानून (POTA), राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और NIA की स्थापना में उनकी भूमिका अहम रही।
आडवाणी की राजनीतिक विरासत
आडवाणी न सिर्फ एक सशक्त नेता रहे, बल्कि उन्होंने नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे नेताओं को भी मार्गदर्शन दिया। उन्होंने NDA गठबंधन को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। उनकी राजनीति हमेशा विचारों और राष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द रही।
आज भी हैं प्रेरणा का स्रोत
लंबे राजनीतिक सफर के बाद अब आडवाणी सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी भारतीय राजनीति के लिए मार्गदर्शक हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका सादा जीवन और देश के प्रति समर्पण लाखों लोगों के लिए उदाहरण है।
आज पूरा देश उन्हें जन्मदिन पर शुभकामनाएं दे रहा है। आडवाणी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की वह कहानी हैं जिसने हमें सिखाया कि विचार, संघर्ष और ईमानदारी से कोई भी व्यक्ति इतिहास लिख सकता है।






