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Reading: 22 अक्टूबर 1900: महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान
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Ho Halla Special

22 अक्टूबर 1900: महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान

thehohalla
Last updated: October 22, 2024 8:42 am
thehohalla 11 months ago
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Ashfaq-ulla-khan
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नयी दिल्ली,22 अक्टूबर 2024:

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास उन वीरों के बलिदानों से भरा पड़ा है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता की स्वतंत्रता का सपना देखा और उसे साकार करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।

इनमें से एक महान क्रांतिकारी थे अशफाक उल्ला खान, जिनका जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। वे उन क्रांतिकारियों में से थे, जिनके लिए राष्ट्र और संस्कृति से ऊपर कुछ नहीं था। अशफाक उल्ला खान का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब भारत परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हर दिशा में संघर्ष हो रहा था।

अशफाक उल्ला खान के जन्म के समय देश में धार्मिक और राजनीतिक रूप से विभाजन की कोशिशें भी चल रही थीं। कुछ कट्टरपंथी मुसलमान अलग देश की मांग कर रहे थे, जबकि दूसरी तरफ एक ऐसा युवा वर्ग भी था, जो यह मानता था कि पूजा-पद्धतियाँ भले ही अलग हों, लेकिन राष्ट्र की स्वतंत्रता और अखंडता सबसे महत्वपूर्ण है।

अशफाक उल्ला खान ऐसे ही विचारों को मानने वाले युवाओं में से थे। उनके विचार थे कि भारत की स्वतंत्रता ही सबसे महत्वपूर्ण है और सभी धर्मों को साथ लेकर चलना चाहिए।

अशफाक उल्ला खान के पिता शफीक उल्ला खान अंग्रेजों की पुलिस में कार्यरत थे, जबकि उनके परिवार का माहौल पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में था।

उनके पिता का संपर्क कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से था, जिससे अशफाक पर भी देशभक्ति की भावना का गहरा प्रभाव पड़ा। अशफाक बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और पढ़ाई में भी काफी रुचि रखते थे। उन्हें शायरी का भी शौक था, और वे अपनी शायरी में भी देशभक्ति और स्वतंत्रता की बातें किया करते थे।

उनके बड़े भाई रियासतुल्लाह मशहूर वकील थे, जबकि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध थे। अशफाक उल्ला खान का जीवन उन युवाओं के साथ जुड़ गया, जो स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार थे।

लखनऊ में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान उनका परिचय चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, शचींद्रनाथ सान्याल, केशव चक्रवर्ती और अन्य क्रांतिकारियों से हुआ, जिनके साथ उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांति का मार्ग चुना।

काकोरी कांड और अशफाक उल्ला खान की भूमिका

स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा के साथ-साथ क्रांतिकारी गतिविधियाँ भी चल रही थीं। अशफाक और उनके साथियों ने महसूस किया कि देश की स्वतंत्रता के लिए हथियार जरूरी हैं, और हथियारों के लिए धन की आवश्यकता है।

अंग्रेजों का खजाना लूटकर उस धन को स्वतंत्रता संग्राम में लगाने का विचार सबसे पहले अशफाक उल्ला खान ने ही दिया था। उनका मानना था कि अंग्रेजों द्वारा लूटा गया धन वास्तव में भारतीयों का है और उसे अंग्रेजों से छीनकर स्वतंत्रता की लड़ाई में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

इसी योजना के तहत 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने उत्तर प्रदेश के काकोरी गाँव में एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई, जिसमें सरकारी खजाना जा रहा था।

इस काकोरी ट्रेन डकैती में अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारी शामिल थे। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। अंग्रेजों के खिलाफ खुली बगावत के रूप में इस घटना को याद किया जाता है।

गिरफ्तारी और संघर्ष

काकोरी कांड के बाद अंग्रेज सरकार ने क्रांतिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू की। लगभग डेढ़ महीने बाद, 26 सितंबर 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन अशफाक उल्ला खान इस गिरफ्तारी से बच निकलने में सफल रहे।

वे कुछ समय तक अज्ञातवास में रहे और बिहार तथा बनारस जैसे स्थानों पर छिपकर रहे। बनारस में उन्होंने एक इंजीनियरिंग कंपनी में नौकरी भी कर ली थी। अशफाक लगभग 10 महीने तक अपनी पहचान छिपाकर रहे।

इस बीच, अशफाक उल्ला खान ने विदेश जाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का विचार किया। उनका उद्देश्य था कि विदेश में अध्ययन करके वह कुछ ऐसे कौशल सीख सकें, जो स्वतंत्रता संग्राम में सहायक हो सके।

इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए वे दिल्ली आए, जहाँ उनका एक पारिवारिक मित्र, जो पठान था, ने उन्हें अपने घर में पनाह दी। लेकिन उस मित्र के मन में लालच आ गया, क्योंकि अशफाक उल्ला खान पर इनाम घोषित था। उस मित्र ने अंग्रेजी पुलिस को खबर कर दी, और अशफाक उल्ला खान को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया।

अशफाक उल्ला खान की अंतिम यात्रा

गिरफ्तारी के बाद अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में रखा गया, जहाँ काकोरी कांड के अन्य आरोपियों को भी विभिन्न जेलों में बंद किया गया था। अशफाक के बड़े भाई रियासतुल्लाह खान ने उनके बचाव में मुकदमा लड़ा।

रियासतुल्लाह एक प्रतिष्ठित वकील थे और उन्होंने अपने भाई की बेगुनाही के लिए सभी संभावित कानूनी दांवपेच इस्तेमाल किए। उन्होंने अदालत में सभी सबूतों को संदिग्ध साबित करने की कोशिश की, लेकिन अंग्रेज सरकार पहले ही काकोरी कांड के प्रमुख क्रांतिकारियों को फांसी देने का निर्णय ले चुकी थी।

काकोरी कांड के चार प्रमुख क्रांतिकारी—राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह—को मौत की सजा सुनाई गई, जबकि अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई। 19 दिसंबर 1927 का वह काला दिन था, जब एक ही दिन में अलग-अलग जेलों में इन चारों वीर क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में फांसी दी गई, जबकि उनके मित्र राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई।

अशफाक उल्ला और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अद्वितीय मिसाल है। मरते दम तक दोनों ने अपनी दोस्ती और देशभक्ति का आदर्श स्थापित किया। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता की नींव को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अशफाक उल्ला खान का जीवन और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और त्याग की प्रेरणा देता रहेगा।

अशफाक उल्ला खान उन क्रांतिकारियों में से थे, जिनके लिए धर्म और जाति से ऊपर देश था। उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।

उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि स्वतंत्रता के लिए लड़ाई केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों और नैतिकता से भी लड़ी जाती है। उनके बलिदान ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को गति दी, बल्कि भारत के लोगों में एकता और अखंडता की भावना को भी जागृत किया।

TAGGED:#Ashfaqulla Khan#Freedom Fighters#Indian Independence Movement#Martyrs#Ram Prasad Bismil#RevolutionaryKakori Conspiracy
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