पटना, 28 अक्टूबर, 2024
बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद और सीवान के सांसद रहे शहाबुद्दीन की जोड़ी के किस्से बिहार की राजनीति के अहम अंग है। इस जोड़ी ने बिहार की राजनीति में लंबे वक्त तक एकछत्र राज किया। जब शहाबुद्दीन जिंदा रहे, सीवान राजद का अभेद्य दुर्ग बना रहा लेकिन शहाबुद्दीन के मरहूम होते ही सीवान की राजनीति से राजद दूर हो गयी।
तब लालू- शहाबु की जोड़ी थी फेमस
सीवान की राजनीति में शहाबुद्दीन का अध्याय 1990 के दशक से ही जुड़ा हुआ है सबसे पहली बार निर्दलीय विधायक के रूप में अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले शहाबुद्दीन जब लालू प्रसाद यादव के संपर्क में आए और जनता दल में शामिल हुए इसके बाद से सीवान की राजनीति का इतिहास बदल गया।
युवा शाखा से की शुरूआत
दरअसल शहाबुद्दीन जितने दिन भी जिंदा रहे पूरे तन मन के साथ राष्ट्रीय जनता दल के साथ खड़े रहे। सिवान के जिरादेई विधानसभा सीट से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के बाद 1990 की दशक में लालू प्रसाद यादव के साथ शहाबुद्दीन की राजनीति की अहम शुरुआत हुई। तब शहाबुद्दीन तत्कालीन जनता दल की युवा शाखा में शामिल हो गए और धीरे-धीरे राजनीति की सीढ़ियों को चढ़ने लगे।
लगातार बढ़ती गयी ताकत
शहाबुद्दीन ने 1990 और 1995 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए। 1996 में वह जनता दल की टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद उनका कद लगातार बढ़ता चला गया। 1997 में जब लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया, तब शहाबुद्दीन राष्ट्रीय जनता दल के साथ चले आए और उसके बाद से उनके राजनीतिक ताकत में लगातार वृद्धि होती चली गई।
तब सीवान में मना करने पर लगी थी रोक
हालांकि शहाबुद्दीन के साथ उनके ऊपर कई राजनीतिक आरोप भी लगते रहे। जो ताउम्र उनके पीछे लगे रहे। शहाबुद्दीन के ऊपर कई मामले भी दर्ज किए गए थे। जिसमें से एक मामला बहुत चर्चित हुआ था जब 2005 में उनको निर्वाचित प्रतिनिधि होने के बाद भी सिवान में प्रवेश करने से मना कर दिया गया था। क्योंकि उन्हें सुरक्षा के लिए खतरा माना गया था। शहाबुद्दीन 1996 से लेकर 2004 तक सिवान निर्वाचन क्षेत्र से संसद के लिए लगातार चार बार चुने गए। राष्ट्रीय जनता दल में शहाबुद्दीन का क्या स्थान था? इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जब शहाबुद्दीन की 2021 में कोरोना से मौत हुई। तब लालू प्रसाद ने कहा था कि यह उनके लिए निजी नुकसान है।
हिना शहाब ने लड़ा चुनाव
शहाबुद्दीन के जाने के बाद हिना शहाब ने सीवान के मैदान में उतर कर अपनी राजनीतिक जड़ को वापस पाने की पूरी कोशिश की लेकिन शहाबुद्दीन जिस सिवान की राजनीति में जितना सफल रहे, उनकी पत्नी उतनी ही असफल रही। शहाबुद्दीन जहां चार बार सांसद और दो बार विधायक बनने में सफल रहे, वहीं हिना शहाब चार बार लोकसभा चुनाव लड़ी लेकिन हार गयी।
2009 से हिना की शुरूआत
हिना शहाब ने सबसे पहली बार 2009 में सीवान लोकसभा सीट से अपनी चुनावी किस्मत को आजमाया लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। 2019 में जदयू की तरफ से कविता सिंह ने उनको शिकस्त दी। हिना शहाब ने 2009, 2014, 2019 में भी चुनाव लड़ा लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2024 में हिना शहाब ने सिवान से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश की थी लेकिन असफलता ही मिली। हिना शहाब ने अपनी राजनैतिक दावेदारी को पेश करने के लिए कई मौकों पर हिंदू कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया, लेकिन राजनैतिक रूप से उनको इसका कोई फायदा नहीं मिला।
ओसामा भी रहे सक्रिय
दरअसल शहाबुद्दीन की विरासत को संभालने की जब भी बात आती है तो उनके बेटे ओसामा की खूब चर्चा होती है। उनके राजनीति में भी आने के कयास लगते रहे हैं। हालांकि ओसामा ने अभी तक खुद को मेनस्ट्रीम राजनीति से दूर रखे हैं। 12 जून 1985 को जन्में ओसामा शहाब ने अपनी दसवीं तक की स्कूली परीक्षा दिल्ली के कर्नल सत्संगी पब्लिक स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने जीडी गोयनका स्कूल, नयी दिल्ली से बारहवीं की पढाई और आगे की पढाई करने के लिए लंदन चले गए। वहां उन्होंने एलएलबी की पढाई की। ओसामा की शादी 2021 में सिवान के ही निवासी आफताब आलम की पुत्री आयशा से हुई। आयशा पेशे से डॉक्टर हैं। कहा जाता है कि अपने जीवित रहते ही शहाबुद्दीन ने इस शादी को तय कर दिया था। तब इस शादी में तेजप्रताप यादव भी शामिल हुए थे.
राजद की कोशिश, फिर दुरूस्त करे अपना किला
दरअसल बिहार के राजनीतिक प्रेक्षकों को माने तो राजद सिवान में अल्पसंख्यकों के ऊपर अपनी पुरानी पकड को फिर से पाना चाहता है. इसके साथ ही राजद पूरे बिहार में भी अपने कोर वोटरों को संदेश देना चाहती है। वर्तमान में राजद के एक भी मुस्लिम सांसद नहीं हैं।
हिना का हो गया था राजद से विछोह
दरअसल पिछले कुछ वर्षों में हिना शहाब का राजद से विछोह हो गया था। बिहार की राजनीति में 2019 का साल ऐसा था, जब पहली बार हिना शहाब और राजद के बीच संबंध में खटास आने की शुरूआत हुई। ऐसा भी माना जाता है, जब 2022 में गोपालगंज के विधायक और बिहार सरकार में तत्कालीन मंत्री रहे सुबाष सिंह की मृत्यु के बाद जब गोपालगंज सीट पर उपचुनाव हुआ था, तब राजद को ऐसी उम्मीद थी कि शहाबुद्दीन के प्रभाव को देखते हुए हिना शहाब गोपालगंज में राजद को सपोर्ट करेंगी लेकिन इस चुनाव में कथित तौर पर हिना शहाब ने अपने रूख को शांत रखा। परिणाम बीजेपी के पक्ष में गया।
अब तेजस्वी के हाथ में कमान
राजनैतिक प्रेक्षकों की माने तो राजद में अब लालू प्रसाद यादव के बदले नीतिगत फैसले लेने में तेजस्वी यादव सक्रिय रहते हैं। तेजस्वी की पीढी से पहले लालू प्रसाद की जोडी शहाबुद्दीन के साथ हिट रही। दोनों ही नेताओं की दूसरी पीढी बिहार की राजनीति में अपने अलग स्थान को बनाने की तैयारी कर रही है। तेजस्वी यादव ने अपने स्थान को कुछ हद तक बनाया भी है। जिस तरह से लालू प्रसाद ने शहाबुद्दीन को राजनीती में स्थान बनाया, बिहार में आने वाले दिनों में यह जोडी कितना असर डालेगी, यह देखना अहम होगा।
दोनों को एक दूसरे की जरूरत
वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव कुमार कहते हैं, चाहे लालू प्रसाद हो या फिर हिना शहाब का परिवार, दोनों को शायद इस बात को अहसास है कि दोनों का एक दूसरे की जरूरत है। हिना शहाब को सिवान की राजनीति में लगातार असफलता मिल रही थी। उनको भी अब सहारे की जरूरत है। वहीं दूसरी तरफ देखें तो जिस तरीके से जन सुराज के द्वारा प्रशांत किशोर अल्पसंख्यकों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उससे राजद को कहीं न कहीं राजनीतिक समीकरण के रूप में डर है। जिस तरीके से प्रशांत किशोर ने अल्पसंख्यकों को लेकर के अपनी रणनीति बनाई है। उससे हिना शहाब और राजद दाेनों ही सशंकित है। ध्रुव कहते हैं, आरजेडी को भी इस बात की चिंता सता रही है कि अगर अल्पसंख्यक मतों में बिखराव हो गया तो उसके परंपरागत एमवाई समीकरण में सेंध लग सकती है।