पटना, 19 अक्टूबर, 2024
राज्य के तीन जिलों सारण, सीवान और गोपालगंज में जहरीली शराब के सेवन से हुई मौत के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने सीएम नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोला है। तेजस्वी (Tejashwi Yadav) ने कहा है कि सीएम महात्मा बनने का ढोंग कर रहे हैं। शनिवार को तेजस्वी ने एक बयान जारी करते हुए आंकडों को भी जारी किया है।
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने कहा कि बिहार के हर चौक-चौराहे पर शराब की दुकाने खुलवाने वाले तथा शराबबंदी के नाम पर जहरीली शराब से हजारों जाने लेने वाले मुख्यमंत्री अब महात्मा बनने का ढोंग कर रहे है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने शुरू के 𝟏𝟎 वर्षों में बिहार में शराब की खपत बढ़ाने के हर उपाय किए और अब अवैध शराब बिकवाने के हर उपाय कर रहे है। क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मेरे इन तथ्यों को झुठला सकते है?
तेजस्वी (Tejashwi Yadav) ने आंकड़ों को जारी करते हुए कहा कि 𝟐𝟎𝟎𝟒-𝟎𝟓 में बिहार के ग्रामीण इलाकों में 𝟓𝟎𝟎 से भी कम शराब की दुकानें थीं, लेकिन 𝟐𝟎𝟏𝟒-𝟏𝟓 में उनके शासन में यह बढ़कर 𝟐,𝟑𝟔𝟎 हो गई। 𝟐𝟎𝟎𝟒-𝟎𝟓 में पूरे बिहार में लगभग 𝟑𝟎𝟎𝟎 शराब की दुकानें थीं जो 𝟐𝟎𝟏𝟒-𝟏𝟓 में बढ़कर 𝟔𝟎𝟎𝟎 से अधिक हो गईं।
𝟏𝟗𝟒𝟕 से 𝟐𝟎𝟎𝟓 यानि 𝟓𝟖 साल में बिहार में सिर्फ 𝟑𝟎𝟎𝟎 दुकानें ही खुलीं लेकिन 𝟐𝟎𝟎𝟓 से लेकर 𝟐𝟎𝟏𝟓 तक नीतीश कुमार ने 𝟏𝟎 साल में इसे दोगुना कर के 𝟔𝟎𝟎𝟎 कर दिया। 𝟓𝟖 साल में बिहार में हर साल औसतन 𝟓𝟏 दुकानें खोली गईं, लेकिन 𝟐𝟎𝟎𝟓-𝟏𝟓 के 𝟏𝟎 साल नीतीश राज में हर साल औसतन 𝟑𝟎𝟎 दुकानें खुलीं।
उन्होंने यह भी कहा है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में शराबबंदी होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं। वर्तमान बिहार में 𝟏𝟓.𝟓 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं। वहीं, इसकी तुलना में महाराष्ट्र, जहां शराबबंदी नहीं है, वहां शराब पीने वाले पुरुषों का प्रतिशत महज 𝟏𝟑.𝟗 है। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 𝟏𝟓.𝟖 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 𝟏𝟒 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं, फिर भी नीतीश कुमार अनुसार बिहार में शराबबंदी लागू है, क्या मजाक है।
नीतीश कुमार की तथाकथित शराबबंदी के बाद भी स्थिति इतनी बदतर है कि एक आंकड़े के अनुसार बिहार में हर दिन औसत 𝟒𝟎𝟎 से ज्यादा लोगों की शराब से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी होती है तथा बिहार पुलिस व मद्य निषेध विभाग की ओर से प्रदेश में हर दिन करीब 𝟔𝟔𝟎𝟎 छापेमारी होती है यानि औसत हर घंटे 𝟐𝟕𝟓 छापेमारी होती है। इसका अर्थ है बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग हर महीने लगभग 𝟐 लाख तथा प्रतिवर्ष 𝟐𝟒 लाख जगह छापेमारी करता है लेकिन इसके बाद भी अवैध शराब का काला काराबोर बदस्तूर जारी है।
इसका एक आशय यह भी है कि ज़ब्त शराब को बाद में जेडीयू नेताओं, शराब माफिया और पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से बाजारों में बेच दिया जाता है। शराबवंदी के बाद भी एक आंकड़े के अनुसार राज्य में लगभग तीन करोड़ 𝟒𝟔 लाख लीटर से अधिक अवैध देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा चुकी है। ये कौन लोग है और किसकी अनुमति से शराबबंदी के बावजूद भी अपना कारोबार चला रहे है?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार शराबबंदी के उल्लंघन 𝟖.𝟒𝟑 लाख मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें कुल 𝟏𝟐.𝟕 लाख लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इन 𝟏𝟐.𝟕 लाख लोगों में 𝟗𝟓% दलित और दूसरे वंचित जातियों के लोग थे, शराबबंदी के नाम पर सबसे ज्यादा शोषण इन्ही वंचित जातियों के साथ क्यों किया जा रहा है?
शराबबंदी नीतीश कुमार के शासन का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। बिहार में शराब के नाम पर अवैध कारोबार के रूप में लगभग 𝟑𝟎 हजार करोड़ की समानांतर अर्थव्यवस्था चलाया जा रहा है, जिसका सीधा फ़ायदा जेडीयू पार्टी और उसके नेताओं को मिल रहा है।