नयी दिल्ली, 10 मार्च 2025:
सनातन धर्म के पुनर्जागरण में चैतन्य महाप्रभु का योगदान
इस्लाम के भारत पर आक्रमण के साथ ही सनातन धर्म स्थलों, मठ-मंदिरों और गुरुकुलों का विध्वंस प्रारंभ हो गया था। मुस्लिम आक्रांताओं ने बलपूर्वक धर्म परिवर्तन और महिलाओं पर अत्याचार शुरू कर दिया था। ऐसे कठिन समय में, पूर्वी भारत के बंगाल में वर्तमान नादिया जिले में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन, 1486 ईस्वी में प्रभु भक्त जगन्नाथ मिश्र और माता शचि के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसे नाना ने ‘विश्वंभर’ नाम दिया। अल्पायु में ही संत ईश्वरपुरी जी से दीक्षा लेकर संन्यास धारण करने के बाद उन्हें ‘श्रीकृष्ण चैतन्य’ नाम मिला।
भारत में सामाजिक और धार्मिक क्रांति की शुरुआत
उस समय भारत अपनी प्राचीन वैभवशाली परंपरा को खो चुका था और गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। वैभव-सम्पन्न भारत को लूटा जा रहा था, और अधिकतर लोग गरीबी और भुखमरी की स्थिति में थे। जात-पात, ऊंच-नीच और धार्मिक आडंबरों ने समाज को खोखला कर दिया था। ऐसे समय में चैतन्य महाप्रभु ने श्रीकृष्ण भक्ति के माध्यम से एक सामाजिक और धार्मिक क्रांति का शंखनाद किया। उन्होंने लोगों के हृदय में भक्ति का संचार करते हुए श्रीकृष्ण की चेतन लीला को भक्ति रस के रूप में प्रचारित किया।

वृंदावन और जगन्नाथ पुरी को पुनर्जीवित करने में योगदान
वृंदावन को नवजीवन देने में चैतन्य महाप्रभु का विशेष योगदान रहा। यदि वे न होते, तो शायद वृंदावन इतिहास के पन्नों से लुप्त हो जाता। इसके अलावा, उन्होंने जगन्नाथ पुरी धाम की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा को सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित किया। इस यात्रा के माध्यम से भगवान को मंदिरों से बाहर लाकर भक्तों के बीच पहुंचाया और “हरे कृष्ण हरे राम” महामंत्र का प्रचार किया, जिससे लोगों के हृदय में भगवान कृष्ण और राम के प्रति अपार श्रद्धा और निष्ठा जागृत हुई।
विश्वव्यापी भक्ति आंदोलन और इस्कॉन की नींव
चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रारंभ किया गया श्रीकृष्ण भक्ति आंदोलन आज संपूर्ण विश्व में ‘इस्कॉन’ के रूप में दिखाई देता है। उनका मानना था कि कोई व्यक्ति बड़े कुल में जन्म लेने से महान नहीं बनता, बल्कि जो सच्चे हृदय से भगवान को भजता है, वही श्रेष्ठ होता है। उन्होंने भारत भर में यात्रा कर वैष्णव भक्ति आंदोलन का प्रचार किया और जबरन मतांतरण का शिकार हुए हिंदुओं को फिर से सनातन धर्म में दीक्षित किया। उनके प्रेम और करुणा का प्रभाव इतना था कि कई मुस्लिमों ने भी उनसे दीक्षा लेकर वैष्णव धर्म अपनाया।
चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा से संतों का उत्थान
संत रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने भी प्रभु के प्रति प्रेमभाव और संकीर्तन की प्रेरणा चैतन्य महाप्रभु से ही प्राप्त की थी। इसके अलावा, पूर्वांचल की पर्वत श्रृंखला में रहने वाले वनवासियों को सनातन धर्म की मुख्यधारा में लाने का महत्वपूर्ण कार्य भी उनके शिष्यों द्वारा संपन्न किया गया।
चैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि प्रेम और भक्ति की शक्ति से किसी भी कठिन परिस्थिति का समाधान संभव है। उन्होंने समरसता और सामाजिक एकता को बढ़ावा देकर हिंदू समाज को एकजुट करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ऐसे महान संत और धर्म प्रचारक चैतन्य महाप्रभु को शत-शत नमन!
