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धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग तेज़, शिवराज बोले- यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं

नई दिल्ली, 28 जून 2025

संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने को लेकर राजनीतिक बहस तेज़ हो गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले की ओर से इन शब्दों पर सवाल उठाने के बाद अब केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी समर्थन में बयान दिया है।

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल विचार सर्वधर्म समभाव है, न कि धर्मनिरपेक्षता। उन्होंने तर्क दिया कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ा गया था और अब इसे हटाने पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। उनके अनुसार, “हमारी संस्कृति में ‘जियो और जीने दो’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ जैसे विचार हैं, जो समरसता और वैश्विक कल्याण की बात करते हैं। इस लिहाज से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद जैसे विचार थोपे गए प्रतीत होते हैं।”

शिवराज ने समाजवाद को लेकर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना हमेशा से रही है, इसलिए समाजवाद की कोई अलग जरूरत नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान से इन शब्दों को हटाने पर देश में बहस होनी चाहिए।

इस बयान के बाद कांग्रेस ने आरएसएस और बीजेपी पर तीखा हमला बोला है। पार्टी ने आरोप लगाया कि भाजपा और संघ संविधान की मूल आत्मा को बदलना चाहते हैं। कांग्रेस ने स्पष्ट कहा कि वह किसी भी कीमत पर संविधान से छेड़छाड़ नहीं होने देगी।

आरएसएस नेता के बयान के बाद से ही बीजेपी के कई नेता इस विचार का समर्थन कर चुके हैं, जबकि विपक्ष इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बता रहा है। आगामी संसद सत्र में इस मुद्दे पर जोरदार बहस होने के आसार हैं।

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