वाराणसी, 27 सितंबर:
अंशुल मौर्य,
“भारत की प्रतिष्ठा के दो मुख्य स्तंभ हैं। पहला संस्कृत और दूसरा हमारी संस्कृति। संस्कृत भाषा न केवल देववाणी है, बल्कि इसे देशवाणी भी कहा जाता है। यह हमारे राष्ट्र की आत्मा है, और हर राष्ट्रवादी को संस्कृत पढ़नी चाहिए। यह भाषा हमारी संस्कृति और हमारे मूल्यों को संजोकर रखने वाली एक अनमोल धरोहर है।” यह बातें उत्तर प्रदेश की राज्यपाल और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने गुरुवार को 42वें दीक्षांत समारोह में अध्यक्षता करते हुए कहीं। उन्होंने इस मौके पर संस्कृत और भारतीय संस्कृति के महत्व पर विशेष रूप से प्रकाश डाला।
आनंदीबेन पटेल ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृत न केवल एक भाषा है, बल्कि यह भारतीय जीवनशैली और हमारी सांस्कृतिक धरोहर का आधार है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में आदर्श जीवनशैली का वर्णन किया गया है, जिसे हिंदी में अनुवादित करके आम जनता तक पहुंचाना चाहिए ताकि समाज के सभी लोग इस प्राचीन ज्ञान का लाभ उठा सकें। संस्कृत के माध्यम से हम न केवल अपने अतीत को जान सकते हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को भी सही दिशा दिखा सकते हैं।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में प्राचीन दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षित किया गया है, जिनमें अमूल्य ज्ञान निहित है। इन पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन द्वारा प्रयास किया जा रहा है। इसके संरक्षण के कार्य को गति देने के लिए कंप्यूटर खरीदने का भी निर्देश दिया गया है, ताकि इन पांडुलिपियों का डिजिटल प्रारूप में संरक्षण और प्रकाशन किया जा सके। राज्यपाल ने सुझाव दिया कि इन पांडुलिपियों का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए ताकि समाज के अधिक से अधिक लोग इस बहुमूल्य धरोहर से परिचित हो सकें।
समारोह के दौरान उन्होंने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य पर भी जोर देते हुए कहा कि 8 वर्ष तक की आयु के बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए, क्योंकि इस उम्र में उनकी स्मरण शक्ति अत्यधिक तेज होती है। इसी आधार पर वे भविष्य में बेहतर नागरिक बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि ये बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं और हमें उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहिए ताकि वे देश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. अनिल डी. सहस्रबुद्धे, जो राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम एवं राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद के अध्यक्ष हैं, ने भी संस्कृत के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत सिर्फ एक भाषा नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और संस्कृति का जीता-जागता प्रतीक है। इसके बिना भारत को पूरी तरह से समझा जाना संभव नहीं है। प्रो. सहस्रबुद्धे ने विश्वविद्यालय की ऐतिहासिकता की सराहना की और बताया कि यहां प्रारंभ से ही देश-विदेश के छात्र अध्ययन और अनुसंधान के लिए आते रहे हैं।
समारोह के विशिष्ट अतिथि और प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने पदक प्राप्त करने वाले छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि उन्हें समाज का आदर्श बनना चाहिए ताकि उनके द्वारा अर्जित ज्ञान का सही उपयोग हो सके। उन्होंने संस्कृत भाषा के महत्व को रेखांकित किया और इसे एक ऐसी भाषा बताया जो हमारी संस्कृति को जीवित रखती है और पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोती है।
इस अवसर पर राज्यपाल द्वारा विभिन्न पुरस्कारों और पदकों का वितरण भी किया गया। कुल 31 मेधावियों को 56 पदक प्रदान किए गए। साथ ही, विश्वविद्यालय के द्वारा गोद लिए गए पांच गांवों के छात्रों को भी विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी होने पर पुरस्कृत किया गया।