
प्रयागराज, 20 मार्च 2025
पीड़िता के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं बल्कि गंभीर यौन हमला है, इलाहाबाद की अदालत ने एक नाबालिग लड़की के साथ कथित बलात्कार के यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) मामले में कहा।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकलपीठ ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश पॉक्सो कोर्ट के समन आदेश को संशोधित करते हुए नए सिरे से समन जारी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म के आरोप में जारी समन विधि सम्मत नहीं है।
उत्तर प्रदेश के कासगंज में पवन और आकाश नाम के आरोपियों ने कथित तौर पर 11 वर्षीय पीड़िता के स्तनों को पकड़ा, उसके पायजामे का नाड़ा फाड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। एक राहगीर के उसे बचाने के लिए आने पर आरोपी मौके से भाग गए। मामला पटियाली थाने में दर्ज किया गया है।
याचिकाकर्ता आकाश, पवन और अशोक को शुरू में आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि आरोपियों पर पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के साथ-साथ धारा 354-बी आईपीसी (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के मामूली आरोप के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
अदालत ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा, “आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और मामले के तथ्य इस मामले में बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनाते हैं।”
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी पवन और आकाश ने 11 वर्षीय पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, लेकिन राहगीरों/गवाहों के हस्तक्षेप के कारण आरोपी पीड़िता को छोड़कर मौके से भाग गए। उन्होंने बलात्कार का अपराध नहीं किया है।”






