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लिव-इन रिलेशनशिप पर MP हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, बिना शादी के भी रह सकते हैं एक साथ

भोपाल, 3 जनवरी 2025

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने एक बालिग जोड़े को बिना विवाह किए एक साथ रहने की अनुमति प्रदान की। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने इस मामले में फैसला देते हुए कहा कि दोनों याचिकाकर्ता 18 साल से अधिक उम्र के हैं और उनके पास अपनी पसंद से जीवन जीने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिकार बाहरी हस्तक्षेप से संरक्षित होना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इतनी कम उम्र में लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने को लेकर चिंता भी व्यक्त की। अदालत ने कहा कि परिपक्वता और आर्थिक स्वतंत्रता के बिना इस प्रकार का फैसला करना याचिकाकर्ताओं के भविष्य के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

याचिकाकर्ता लड़की ने कोर्ट में बताया कि उसकी मां की मृत्यु के बाद घर का माहौल उसके लिए असहनीय हो गया था। इसी कारण उसने अपने साथी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का निर्णय लिया। लड़की ने कहा कि उसकी परिस्थितियों ने उसे यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया। कोर्ट ने लड़की की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और उसकी स्वायत्तता का सम्मान करते हुए यह फैसला दिया। कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे इस जोड़े के अधिकारों की रक्षा करें और किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप से उन्हें सुरक्षित रखें।

फैसले में कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि 18 वर्ष की आयु पूर्णता का संकेत देती है, लेकिन परिपक्वता और जिम्मेदारी का प्रदर्शन करना याचिकाकर्ताओं की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि बालिग होने के बावजूद, यह आवश्यक है कि याचिकाकर्ता अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण निर्णय को समझदारी और दूरदर्शिता के साथ लें।

कोर्ट ने इस मामले को समाज के व्यापक परिप्रेक्ष्य में भी देखा। न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के फैसले से समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की नई मिसाल स्थापित होती है। हालांकि, इतनी कम उम्र में, जब व्यक्ति आर्थिक और मानसिक रूप से पूरी तरह परिपक्व नहीं होते, ऐसे फैसले लेने से जीवन में जटिलताएं बढ़ सकती हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला एक ओर जहां व्यक्तियों की स्वतंत्रता और अधिकारों को मजबूत करता है, वहीं दूसरी ओर इस बात पर जोर देता है कि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी का निर्वहन भी जरूरी है। यह फैसला युवा पीढ़ी के लिए एक सबक है कि वे अपने निर्णयों को परिपक्वता और जिम्मेदारी के साथ लें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को बर्दाश्त

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