नई दिल्ली,7 नवंबर 2024
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में भर्ती के नियम चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद नहीं बदले जा सकते, जब तक कि संबंधित नियम ऐसा करने की स्पष्ट अनुमति न दें। यह फैसला राजस्थान हाई कोर्ट में ट्रांसलेटर पदों पर भर्ती से जुड़ा था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत विज्ञापन से होती है और पात्रता मानदंड को बीच में बदला नहीं जा सकता, जब तक कि वर्तमान नियमों या विज्ञापन में इसकी अनुमति न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि सरकारी नौकरियों में भर्ती के नियम चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद नहीं बदले जा सकते, जब तक कि नियम इसकी अनुमति न दें। यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट में ट्रांसलेटर पदों की भर्ती से जुड़ा था। कोर्ट ने अपने पुराने फैसले ‘के. मंजुश्री बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ (2008) को सही ठहराते हुए कहा कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान पात्रता मानदंड को बदला नहीं जा सकता। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि चयन सूची में नाम आने से उम्मीदवार को रोजगार का पूर्ण अधिकार नहीं मिलता। ‘हरियाणा राज्य बनाम सुभाष चंदर मारवाह’ (1973) के फैसले के तहत सरकार उच्च पदों के लिए ऊंचे मानदंड तय कर सकती है।
यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट में 13 ट्रांसलेटर पदों की भर्ती से जुड़ा था, जहां उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा और इंटरव्यू में शामिल होना था। 21 उम्मीदवारों में से तीन को चयनित किया गया, लेकिन बाद में यह पता चला कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने केवल उन उम्मीदवारों को सफल घोषित करने का आदेश दिया, जिन्होंने कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे, जबकि भर्ती प्रक्रिया की अधिसूचना में इस मानदंड का जिक्र नहीं था। इस संशोधित मानदंड को लागू करने के बाद तीन उम्मीदवारों का चयन हुआ और बाकी बाहर हो गए। असफल उम्मीदवारों ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसमें उन्होंने ‘खेल के नियमों को बदलने’ का तर्क दिया और के. मंजुश्री के फैसले का हवाला दिया।