
नई दिल्ली | 21 अप्रैल 2025
भारत सरकार अब चीन के निवेश को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए नई शर्तें थोप रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में चीनी कंपनियों की इक्विटी हिस्सेदारी को 10% तक सीमित करने की योजना बना रहा है। यह अनुमति भी सिर्फ तभी दी जाएगी जब चीनी कंपनियां भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेंगी। इस कदम का मकसद देश में लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना है।
यह फैसला ऐसे वक्त पर आया है जब अमेरिका ने चीन पर 245% तक का भारी टैरिफ लगा दिया है, जिससे चीन की कंपनियों पर वैश्विक स्तर पर दबाव बढ़ गया है। भारत इस मौके का फायदा उठाते हुए चीन को झुकने पर मजबूर कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार, सरकार उन चीनी कंपनियों को ही प्राथमिकता देगी जो भारतीय मैन्युफैक्चरिंग में सक्रिय रूप से भाग लेंगी। यदि अमेरिकी या यूरोपीय कंपनियां चीन से अपने यूनिट भारत ट्रांसफर करना चाहें, तो चीनी सप्लायर्स को 49% तक की हिस्सेदारी देने का अपवाद हो सकता है। हालांकि, सभी प्रस्ताव केस-दर-केस आधार पर जांचे जाएंगे।
भारत को डर है कि चीन अब भी ड्रिलिंग मशीन, सोलर पैनल उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अहम क्षेत्रों की सप्लाई चेन पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है। यही कारण है कि सरकार व्यापक चीनी निवेश से बचना चाहती है, ताकि भारत ‘दूसरा वियतनाम’ न बन जाए।
सरकार की योजना अमेरिकी बाजार में भी भारतीय कंपनियों की मौजूदगी बढ़ाने की है। माना जा रहा है कि भारत-अमेरिका बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट (BTA) इस साल के अंत तक साइन हो सकता है। Apple जैसी कंपनियां अब ताइवानी और जापानी सप्लायर्स के साथ मिलकर भारत में मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम विकसित कर रही हैं, जहां टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे भारतीय प्लेयर्स प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
भारत का यह रुख दिखाता है कि अब वह ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए चीन की शर्तों पर नहीं, अपनी शर्तों पर खेलना चाहता है।