
अंशुल मौर्य
वाराणसी, 1 सितंबर 2025 :
यूपी की शिवनगरी वाराणसी जिले में लक्खा मेले का रंगारंग आगाज हुआ। इस मेले का दिल, सोरहिया मेला, काशी की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का अनमोल हिस्सा है। सोलह दिनों तक चलने वाला यह अनुष्ठान मां महालक्ष्मी की भक्ति में डूबा रहता है। इस दौरान महिलाएं व्रत, पूजा-अर्चना के साथ धन, ऐश्वर्य और संतान सुख की कामना करतीं हैं।

लक्ष्मीकुंड स्थित भव्य लक्ष्मी मंदिर इस मेले का केंद्र है। पहले दिन से ही मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। भक्त मां लक्ष्मी की मुखौटे वाली प्रतिमा को अपने घर ले जाते हैं और सोलह दिनों तक विधि-विधान से उनकी पूजा करेंगे। इस व्रत की खासियत है सोलह गांठों वाला धागा, जिसे महिलाएं मां को अर्पित कर अनुष्ठान का संकल्प लेती हैं। हर दिन मां की सोलह परिक्रमाएं की जाती हैं, जो भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। महंत अवशेष पांडे ‘कल्लू गुरु’ बताते हैं कि लक्ष्मीकुंड का यह मंदिर मां लक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की एक साथ पूजा का अनूठा स्थल है। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां तीनों देवियों की कृपा एक साथ प्राप्त होती है।

मेले में पूजा की सामग्री भी खास है। कमलगट्टे की माला, कमल का फूल और दूब मां को चढ़ाए जाते हैं, जबकि भोग में कमलगट्टे के दानों से बना सुस्वादु हलुआ अर्पित किया जाता है। सोलहवें दिन, जीवित्पुत्रिका व्रत के साथ मेले का समापन होता है। पूजा के बाद भक्त अगले साल तक प्रतिमा को घर में पूजते हैं और फिर उसे गंगा या लक्ष्मीकुंड में विसर्जित कर देते हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने काशी में मां महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सोलह कलश स्थापित कर यह पूजा शुरू की थी, तभी से यह परंपरा काशी की शान बनी हुई है।






