महाकुंभ नगर, 8 जनवरी 2025:
महाकुंभ या कुंभ का नाम आते ही सबसे पहले अखाड़ों का जिक्र आता है। साधु-संतों के अखाड़े महाकुंभ का सबसे अहम हिस्सा होते हैं। इनके अलग-अलग शिविर लगते हैं। शाही स्नान के दिन इनके लिए अलग से विशेष इंतजाम किए जाते हैं।
अखाड़ा शब्द सुनकर सबसे पहले कुश्ती का ध्यान आता है लेकिन यहां इसका अर्थ अलग है। दरअसल पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा या साधुओं का जत्था कहा जाता था और ऐसा माना जाता है कि अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों में ये भी लिखा है कि अलख शब्द से ‘अखाड़ा’ शब्द निकला है और कुछ जानकारों का कहना है कि साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते उनके समूहों को अखाड़ा नाम दिया गया।
देश में हैं कुल 13 अखाड़े
देश में 23 अखाड़े हैं। ये सभी अखाड़े महाकुंभ में पहुंचते हैं। ये अखाड़े उदासीन, शैव और वैष्णव पंथ के सन्यासियों के हैं। 7 अखाड़े शैव सन्यासी संप्रदाय और 3 अखाड़े बैरागी वैष्णव सम्प्रदाय के हैं। वहीं 3 उदासीन सम्प्रदाय के अखाड़े हैं। इन सभी अखाड़ों को हिन्दू धर्म में धार्मिकता और साधना का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कई संगठन बनाए, जिन्हें शस्त्र विद्या का अधिक ज्ञान प्राप्त था। इन संगठनों को अखाड़ों के नाम से जाना गया।
8वीं सदी में अस्तित्व में आए अखाड़े
माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में अखाड़ों की स्थापना की थी। इन अखाड़ों ने देश के स्वतंत्रता संघर्ष में भी अहम भूमिका निभाई। अखाड़ों की पहचान है, शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, करतब, और शस्त्रों का प्रदर्शन। अखाड़ों से जुड़े संतों के मुताबिक, जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ।
पहले थे 4 चार प्रमुख अखाड़े
बताते हैं कि शुरू में सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े थे लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया और आज 13 अखाड़े मौजूद हैं। इनके नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा हैं।
सभी अखाड़ों के अलग हैं नियम व कानून
महाकुंभ में शामिल होने वाले सभी अखाड़े अपने अलग नियम और कानून से संचालित होते हैं। यहां गलती करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़े में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगता है। फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद देकर उसे दोषमुक्त करते हैं। विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे बड़े मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है।
किन गलतियों पर मिलती है सजा
-अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में झगड़ा करें
-कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो
-छावनी में चोरी करते हुए पकड़ा जाए
-देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश करे
-किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे
-अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए
-अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता उसे निष्काषित कर दिया जाता है