इंदौर, 4 जनवरी 2025
संगठन के प्रमुख मोहन भागवत ने इंदौर में शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने कार्यकर्ताओं को लड़ाई या सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए ‘लाठी’ या छड़ी का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित नहीं करता है, बल्कि इसलिए कि यह बहादुरी पैदा करता है और दृढ़ रहना सिखाता है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, “लाठी चलाने वाले व्यक्ति में ‘वीर वृत्ति’ (बहादुरी की भावना) विकसित होती है और वह डरता नहीं है। लाठी प्रशिक्षण संकट में दृढ़ता सिखाता है और व्यक्ति को संकल्प, धैर्य और अटूट शक्ति के साथ रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है।” भागवत इंदौर शहर में ‘स्वर शतक मालवा’ कार्यक्रम में बोल रहे थे, जहां 870 संघ स्वयंसेवकों ने एक समूह प्रदर्शन में पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र बजाया।
उन्होंने आगे कहा, भारतीय और पारंपरिक संगीत सद्भाव, सद्भावना और अनुशासन सिखाता है और व्यर्थ के आकर्षण से मुक्त कर व्यक्ति को सही रास्ते पर ले जाता है।
श्री भागवत ने कहा कि जहां दुनिया के अन्य हिस्सों का संगीत मन को उत्तेजित करता है और आनंदित करता है, वहीं भारतीय संगीत मन को शांत करके आनंद लाता है।
उन्होंने कहा, “भारतीय संगीत सुनने से व्यक्ति सांसारिक आकर्षणों से मुक्त हो जाता है और अच्छे काम करने की प्रवृत्ति विकसित होती है, जिससे भरपूर आनंद मिलता है। भारतीय संगीत और पारंपरिक संगीत सद्भाव और अनुशासन और सह-अस्तित्व सिखाता है।”
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देशभक्ति से प्रेरित होकर संघ के स्वयंसेवकों ने विभिन्न वाद्ययंत्रों का उपयोग करके पारंपरिक धुनें और मार्शल संगीत तैयार किया है और इस प्रयास के पीछे का विचार यह सुनिश्चित करना था कि देश में उस कला की कमी न हो जो बाकी दुनिया के पास है।
उन्होंने कहा, “हमारा भारत कोई पिछड़ा या गरीब देश नहीं है। हम दुनिया के देशों की सभा में अग्रिम पंक्ति में बैठ सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि हमारे पास विविध कलाएं हैं।”
उन्होंने लोगों से “एक नया राष्ट्र” बनाने के अभियान में आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ शामिल होने का भी आग्रह किया। आरएसएस 2025 में अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करेगा।