
लखनऊ, 30 जून 2025:
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ने पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व मील का पत्थर स्थापित किया है। लखनऊ अब यूपी की पहली ‘ज़ीरो डंप सिटी’ बन गया है, जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में एक गेम-चेंजर साबित हो रहा है। यह उल्लेखनीय उपलब्धि शिवरी स्थित अत्याधुनिक कूड़ा निस्तारण प्लांट की तीनों इकाइयों के पूर्ण संचालन से संभव हुई है, जहाँ अब हर दिन 2100 मीट्रिक टन कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रोसेसिंग की जा रही है।
शिवरी प्लांट का कायाकल्प
शिवरी प्लांट की यात्रा चुनौतियों से भरी रही है। इसकी शुरुआत 2012 में हुई थी, लेकिन ठेकेदारों की लापरवाही के कारण प्लांट पर कचरे का विशाल पहाड़ जमा हो गया था। शुरुआती ठेकेदार ज्योति इनवायरोटेक और बाद में 2017 में नियुक्त चीनी कंपनी ईकोग्रीन एनर्जी पर कचरा निस्तारण में अनियमितताओं के लिए 40 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। मामले ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का रुख किया, जिसके आदेश पर लखनऊ नगर निगम ने 2023 में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 96 करोड़ रुपये की एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की।
जनवरी 2024 से, पुणे की भूमि ग्रीन एनर्जी कंपनी ने इस महत्वपूर्ण परियोजना की कमान संभाली। इस कंपनी ने तकनीकी रूप से उन्नत माइक्रोबियल कल्चर तकनीक का उपयोग करके कचरे की दुर्गंध और लीचेट (जहरीला तरल) को प्रभावी ढंग से कम किया है। कचरे को प्रोसेस करने से पहले उसे हवा से सुखाया जाता है, जिससे उसका वजन और नमी कम हो जाती है, जो कुशल कचरा प्रसंस्करण के लिए महत्वपूर्ण है।
वैज्ञानिक अपशिष्ट विभाजन और उपयोग
अब शिवरी प्लांट की तीनों यूनिटें प्रतिदिन 700-700 मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस करती हैं। प्रोसेसिंग के बाद कचरे को चार मुख्य हिस्सों में बांटा जाता है, जिससे शून्य अपशिष्ट का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके:
• बारीक मिट्टी: यह उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी कृषि कार्यों में उपयोग की जाती है, जिससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार होता है।
• RDF (Refused Derived Fuel): प्लास्टिक और पेपर से बना यह ईंधन सीमेंट फैक्ट्रियों और पेपर मिलों को भेजा जाता है, जो गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने में मदद करता है।
• मोटा ठोस कचरा: इसका उपयोग भूमि पुनःभरण (लैंड रिक्लेमेशन) के कार्यों में किया जाता है, जिससे अव्यवस्थित डंपिंग को रोका जा सकता है।
• निर्माण व मलबा: इस हिस्से का उपयोग सड़क निर्माण और अन्य निर्माण कार्यों में किया जाता है, जिससे पुनर्चक्रण को बढ़ावा मिलता है।
शिवरी प्लांट पर बने कचरे के ऐतिहासिक पहाड़ का दो-तिहाई हिस्सा पहले ही समाप्त किया जा चुका है, और जल्द ही यहाँ अपशिष्ट से बिजली उत्पादन (Waste-to-Energy) की शुरुआत भी होगी। यह पहल न केवल लखनऊ के लिए एक बड़ी सफलता है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश और देश के लिए एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है। यह पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और स्वच्छ भारत अभियान को मजबूती प्रदान करता है।