वाराणसी, 25 सितंबर:
अंशुल मौर्य,
“जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो, ललना लाल होइहे, कुलवा के दीपक मनवा में, आस लागल हो…” इसी गीत को गुनगुनाते हुए माताएं अपने संतान की लंबी उम्र की कामना लिए काशी के तालाब, कुंडों पर पहुंची थी। संतान के खुशहाली व लंबी आयु के लिए माताएं बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा। कुछ निःसन्तान माताओं ने भी पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखा। मान्यता है इस व्रत की प्रथा महाभारत काल से चली आ रही है।
वाराणसी के गंगा घाट, कुंड-तालाब के किनारे महिलाएं पूजा का थाल लिए पहुंची। जितिया व्रत की पूजा करने के लिए पूजास्थल की गोबर और मिट्टी से लिपाई की गई। इसके बाद मिट्टी लीपकर छोटा सा कुंड बनाकर भगवान जीमूतवाहन, चील और सियार की कुश से मूर्ति बनाई गई। भगवान जीमूतवाहन की मूर्ति को मिट्टी के पात्र या जल में स्थापित करके सजाया गया। माताओं ने भगवान के समक्ष धूप, दीप, फूल, माला और अक्षत आदि अर्पित किए। ततपश्चात महिलाओं ने जीमूतवाहन और गरुड़ की कथा और चिल्हो सियारो की कथा सुनी। इसके बाद आरती करने के बाद भोग लगाकर पूजा संपन्न की जाती है।
रामकटोरा की रहने वाली मंजुली श्रीवास्तव ने कहा कि हर मां की अपने बच्चे के लिए बस यही अरदास रहती है कि, उसके संतान की उम्र लंबी हो, वह अपने कुल का नाम रोशन करें और जीवन में खूब तरक्की करें। भगवान से अपने बच्चे की इसी कामना के लिए हम माताएं जितिया व्रत का पालन करती हैं। सुंदरपुर की प्रतिभा सिंह ने कहा कि संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और उज्जवल भविष्य के लिए इस व्रत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
बता दें, जितिया का व्रत महिलाएं निर्जला रखती हैं यानि कि इस व्रत में अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है। छठ व्रत की तरह ही ये पर्व भी तीन दिन तक मनाया जाता है। लेकिन इस पर्व का सबसे मुख्य दिन होता है आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि जिस दिन जितिया का निर्जला व्रत रखा जाता है। इसी दिन माताएं गंगा घाट, तालाब, कुंड पर जीमूत वाहन की पूजा के समय उनकी कथा सुनती है।