
नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी समेत विपक्षी दलों के हमलों के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयोग एक बार फिर विवादों में हैं। राहुल गांधी से शपथ पत्र मांगने और देश से माफी मांगने की मांग के बाद विपक्ष अब सीईसी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है। सवाल यह है कि क्या किसी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया जा सकता है और इसकी संवैधानिक प्रक्रिया क्या है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324(5) और अनुच्छेद 124(4) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह है। यानी केवल संसद के माध्यम से ही उन्हें हटाया जा सकता है। यह प्रावधान इसलिए है ताकि चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र रह सके और सरकारें उसे दबाव में न ला सकें। मुख्य चुनाव आयुक्त को छह वर्ष का कार्यकाल और सुप्रीम कोर्ट जज जैसी सुविधाएँ मिलती हैं। कार्यकाल के दौरान उनकी सेवा शर्तों में बदलाव नहीं किया जा सकता।
जहाँ मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की इतनी कठोर प्रक्रिया तय है, वहीं अन्य चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति सीधे हटा सकते हैं। हालांकि इसके लिए मुख्य चुनाव आयुक्त से परामर्श लेना अनिवार्य है। इससे आयोग की स्वतंत्रता बनी रहती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई फैसलों में चुनाव आयोग को लोकतंत्र का प्रहरी बताया है और साफ किया है कि उसकी निष्पक्षता लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है।
अब तक देश में किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग जैसी प्रक्रिया से नहीं हटाया गया है। यह संवैधानिक सुरक्षा की ताकत को दर्शाता है। हालांकि, समय-समय पर आयोग की निष्पक्षता पर सवाल जरूर उठे हैं। साल 2023 में नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव कर प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता वाली समिति को नियुक्ति का अधिकार दिया गया था, जिस पर विवाद भी हुआ। बावजूद इसके अब तक सीईसी की कुर्सी संविधान की मजबूत ढाल से सुरक्षित मानी जाती है।