विपक्षी एकता का महत्वपूर्ण पड़ाव होगा यूपी विधान सभा उपचुनाव

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कोमल शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

जैसे जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे है वैसे वैसे विपक्षी गठबंधन की पोल खोल हो रही है, हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से हाथ मिलाने से परहेज़ किया, तो समाजवादी पार्टी से भी दिल नही मिला पाई।

दरअसल कांग्रेस पूरे कॉन्फिडेंस के साथ हरियाणा चुनाव लड़ी। कांग्रेस नही चाहती थी कि सीट शेयरिंग के चक्कर में उनके वोट बंटे, देखा जाए तो इससे वाकई कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा हो सकता था। बरहाल अब जब हरियाणा में भी मतदान हो गया है, अब कांग्रेस के सामने खड़ी होगी दूसरे राज्यों के लिए चुनौतियां। ये चुनौती खासतौर से दिल्ली जहां पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपने पूरे दमखम पर विजय होती आई है और इस बार भी ये ही उम्मीद कर रही है ऐसे में अब दिल्ली में आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस के साथ ये ही रवैया अपना सकती है यानि सीट शेयरिंग से परहेज़।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी उम्मीद लगाए बैठे थे कि जम्मू कश्मीर और हरियाणा चुनाव में कांग्रेस अपना गठबंधन धर्म निभाएगी, लेकिन कांग्रेस ने बड़ी ही बेरूखी से उनकी उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया ।
हालांकि कांग्रेस पर पहले भी ये आरोप लगता रहा है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद गठबंधन धर्म निभाने से ज्यादा अपने हित को लेकर चलती है। ये हुआ भी हरियाणा विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग के मुद्दे पर। लेकिन अब कांग्रेस के इस रूख पर आम आदमी पार्टी दिल्ली में और समाजवादी पार्टी यूपी के उपचुनाव में कांग्रेस का साथ अपनाने के मूड में दिख रही है।
दरअसल उत्तरप्रदेश में नौ विधायकों के सांसद चुने जाने और एक विधायक के अयोग्य ठहराए जाने के बाद वहां 10 सीटों पर उपचुनाव होने है। सपा यूपी में लोकसभा चुनाव के बेहतरीन नतीजों के बाद आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रही है और इन सीटों के लिए भी हाथ मिलाने की बजाए हर सीट पर अपने उम्मीदवार उतारने का मन बना रही है। खास बात ये है कि 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में इन दस सीटों करहल,मिल्कीपुर, खैर, गाज़ियाबाद,फूलपुर, मझवां, मीरापुर, सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी में से समाजवादी पार्टी सिर्फ पांच सीटों पर ही विजयी हुई थी, इसलिए कांग्रेस बाकी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का मन बना रही थी, लेकिन सपा इस पर राजी नही हो रही। मनाते मनाते कांग्रेस सीट की संख्या घटाती जा रही है लेकिन अखिलेश है कि मानते ही नही दिखाई दे रहे। दरअसल गठबंधन की लाज रखने की सोच रखने वाले अखिलेश यादव अब कांग्रेस से ही चाल चलते हुए दिखाई दे रहे है यानि की अपने दम पर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार उतारना। वैसे भी अखिलेश जो इस गठबंधन को लेकर पहले सकारात्मक दिखाई देते थे, उसको राहुल गांधी बार बार ठेस पहुंचाते दिखाई दिए। चाहे वो मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में हो या फिर जम्मू कश्मीर और हरियाणा चुनाव में।

देखा जाए तो गठबंधन से अलग हट कर चलना या प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस को कम से कम सीट के लिए मानने पर मजबूर कर देने पर फायदा समाजवादी पार्टी का ही है। एक तो ये कि ऐसा करके बाकी आने वाले चुनावों में सपा कांग्रेस को कम से कम सीटों के लिए मनाने का सिलसिला जारी रख सकती है। दूसरा जिस तरह से कांग्रेस हरियाणा में अपने बलबूते पर लड़ कर अपनी सियासी ज़मीन खिसकने नही देना चाहती है। समाजवादी पार्टी भी उपचुनावों और 2027 में होने विधानसभा चुनाव में चाहेंगे कि अपनी पुरानी सियासी जमीन को ना सिर्फ भाजपा से वापस ले बल्कि उसमें किसी को हिस्सेदार ना बनाए ।

यूपी ही नही अखिलेश यादव चाहते है कि जहां जहां भी उनकी पार्टी को जनाधार है वहां वहां वो और मजबूती से उतरे और बाकी राज्यों में भी धीरे धीरे समाजवादी पार्टी की जड़े फैलाना शुरू करे, लेकिन इसमें गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस उनका पूरी तरह से साथ नही दे रही, जाहिर सी बात इसके बाद धीरे धीरे पार्टी अपने दम पर ही आगे की राह पकड़ेगी।

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