
अयोध्या, 12 फरवरी 2025:
अयोध्या के राममंदिर में 32 वर्षों तक रामलला की सेवा करने वाले मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास बाबरी विध्वंस से लेकर राममंदिर निर्माण तक के साक्षी रहे हैं। उन्होंने रामलला के टेंट में दुर्दिन देखे और उनके स्थायी मंदिर में विराजमान होने तक सेवा की। बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य कारणों के बावजूद उनकी भक्ति और सेवा में कोई कमी नहीं आई।

संस्कृत शिक्षा से पुजारी बनने तक का सफर
आचार्य सत्येंद्र दास ने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की और अगले वर्ष संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक बने। वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस से नौ माह पहले उन्हें रामलला की पूजा-अर्चना का दायित्व सौंपा गया। 87 वर्ष की उम्र तक उन्होंने पूरे समर्पण से यह जिम्मेदारी निभाई।
रामलला की सेवा में बिताए कठिन दिन
बाबरी विध्वंस के बाद, जब रामलला को टेंट में स्थापित किया गया, तब आचार्य सत्येंद्र दास ने सर्दी, गर्मी और बारिश के बीच उनकी पूजा-अर्चना जारी रखी। वह इस स्थिति को देखकर भावुक हो जाते थे। एक समय ऐसा था जब रामलला को साल भर में केवल एक सेट नए वस्त्र मिलते थे, और हर अनुष्ठान के लिए अनुमति लेनी पड़ती थी।
…तब रामलला के विग्रह को किया था सुरक्षित
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला के विग्रह को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाई। उनके सहायक पुजारी प्रेमचंद्र त्रिपाठी के अनुसार जब कारसेवकों ने ढांचे को गिराना शुरू किया, तब आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला सहित चारों भाइयों के विग्रह को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया, जिससे उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।
रामलला की सेवा में जीवन समर्पित करने का संकल्प
आचार्य सत्येंद्र दास ने हाल ही में कहा था कि मैंने तीन दशक रामलला की सेवा में बिता दिए हैं, और जब तक संभव होगा, आगे भी उनकी सेवा करता रहूंगा। यह कथन उनके रामलला के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाता था। उनका जीवन श्रद्धा, भक्ति और सेवा का अनुपम उदाहरण है।
