बागपत, 6 सितंबर, 2024
उत्तर प्रदेश के बागपत के गांव कोटाना में एक शत्रु संपत्ति की नीलामी 1 करोड़ 38 लाख 16 हजार रुपये में की गई है । ऐसा माना गया है कि यह शत्रु संपत्ति पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के परिजन नुरू की खानदानी जमीन है,जो पाकिस्तान जा कर बस गया था।
13 बीघा भूमि यानी शत्रु संपत्ति को नीलाम कर दिया गया है। यूपी के बागपत में परवेज मुशर्रफ की खानदानी जमीन की तीन लोगों ने कीमत 1 करोड़ 38 लाख 16 हजार रुपये लगाई।आठ खसरा नंबर वाली भूमि की ऑनलाइन ई-नीलामी प्रक्रिया पांच सितंबर को सुबह 11 बजे से रात नौ बजे तक चली। यानी 10 घंटे में इस संपत्ति को खरीद लिया गया। शत्रु संपत्ति बिकने के साथ ही परवेज मुशर्रफ और उसके परिजन नुरू का नाम बागपत में हमेशा के लिए समाप्त हो गया है।
गांव के लोगो ने कभी भी परेवज़ मुशर्रफ को इस गांव में नहीं देखा था न ही प्रशासन के पास मुशर्रफ से संबंधित कोई दस्तावेज़ है लेकिन यह शत्रु संपत्ति की श्रेणी में है।
लखनऊ से ई-नीलामी की प्रक्रिया की जानकारी बागपत के प्रशासन को दे दी गई है। करीब 15 साल पहले इस संपति को शत्रु संपति में जोड़ दिया गया था। 13 में से लगभग पौने पांच बीघा भूमि को बागपत के पंकज कुमार ने खरीदा है।
कोटाना गांव का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह न केवल पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति का ननिहाल था, बल्कि उनके पिता के माता-पिता का निवास भी था। आपको बता दे कि परवेज मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था।
जिला प्रशासन के अनुसार कोटाना के नूरू की लगभग दो हेक्टेयर भूमि, जो शत्रु संपत्ति के रूप में दर्ज की जा चुकी थी उससे नीलाम किया गया है। कोटाना के ग्रामीणों को याद है कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ के दादा और नानी उनके गांव से थे। उनकी मां बेगम जरीन और पिता मुशर्रफुद्दीन ने 1943 में अपनी शादी के बाद कोटाना छोड़ दिया था लेकिन 2001 में बेगम जरीन भारत आईं थी।
वहीं परवेज मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था, वे कभी कोटाना गांव नहीं गए क्योंकि उनका परिवार देश के विभाजन के समय 1947 में पाकिस्तान में बस गया था। गांव वालों के मुताबिक परवेज मुशर्रफ के रिश्तेदार नूरू पाकिस्तान बनने के बाद 18 साल तक कोटाना में रहे थे और 1965 में पाकिस्तान चले गए थे। उनके पास गांव में यह दो हेक्टेयर जमीन थी।
इस जमीन की देख रेख बनारसी दास नाम के गांव के ही व्यक्ति करते थे,माना जाता है वो परेवज मुशर्रफ के परिजनों के करीब थे। करीब 15 साल पहले इस जमीन के मालिक के पाकिस्तान में बस जाने के बाद प्रशासन ने जमीन को कब्जे में ले लिया और इस जमीन को शत्रु जमीन घोषित कर दी थी।