
वाराणसी,3 अप्रैल 2025
14 साल पहले अपने परिवार से बिछड़े नीरज कनौजिया की घर वापसी ने पूरे वाराणसी के गांगकला गांव में खुशी की लहर दौड़ा दी। 8 साल की उम्र में मुंबई से लापता हुए नीरज को उनके परिवार ने लंबे समय तक खोजा, लेकिन जब कोई सुराग नहीं मिला तो उन्होंने उम्मीद छोड़ दी। चमत्कार तब हुआ जब नीरज अचानक गांव पहुंचे और उन्हें देखते ही परिवार के आंसू छलक पड़े। मां ने खुशी से बेटे को गले लगा लिया और 100 वर्षीय दादी भी बेहद खुश नजर आईं।
नीरज, जो अपने पिता पुन्नवासी कनौजिया और भाई के साथ मुंबई में रहते थे, लोकल ट्रेन से घूमने निकले और भीड़ में खो गए। कई ट्रेनों में सफर करने के बाद वह आंध्र प्रदेश के गुडूर स्टेशन पहुंचे, जहां रेलवे पुलिस ने उन्हें भटकते हुए पाया। पुलिस ने संवेदनशीलता दिखाते हुए उन्हें वेंकटचलम, नेल्लोर स्थित स्वर्ण भारत ट्रस्ट को सौंप दिया। ट्रस्ट की प्रबंध न्यासी दीपा वेंकट ने नीरज के पालन-पोषण की जिम्मेदारी ली और उनकी शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न व्यावसायिक कौशलों में भी प्रशिक्षण दिलवाया।
ट्रस्ट प्रबंधन ने नीरज के परिवार की खोज के कई प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। आखिरकार, अक्टूबर 2024 में, उन्होंने मुंबई के कुरार पुलिस स्टेशन से संपर्क किया। इस साल होली से एक दिन पहले नीरज को उनके पिता की तलाश में मुंबई के मलाड पूर्व भेजा गया। वहां उन्होंने अपने पिता के कार्यस्थल और अपनी पुरानी बेकरी को पहचान लिया। इसके बाद परिवार से संपर्क हुआ और व्हाट्सऐप कॉल के जरिए पहली बातचीत हुई।
वेंकट वाराणसी में मौजूद थीं, जिन्होंने तुरंत नीरज की फ्लाइट बुक कराई। वाराणसी एयरपोर्ट पर पहुंचते ही परिवार ने उन्हें पहचान लिया, क्योंकि उनका चेहरा उनके पिता से काफी मिलता-जुलता था। मां की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े और पिता व दादी की खुशी भी देखते ही बन रही थी।
नीरज की मां ने दीपा वेंकट का आभार जताते हुए कहा, “हम लोग मैडम के बहुत आभारी हैं।” मंगलवार शाम को नीरज अपने पिता के साथ स्वर्ण भारत ट्रस्ट में काम करने के लिए चेन्नई रवाना हो गए, जहां उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।