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कैलाश मंदिर में होती है ‘जुड़वा’ शिवलिंग की पूजा…परशुराम व उनके पिता से जुड़ा है इतिहास

मयंक चावला

आगरा, 15 जुलाई 2025:

यूपी के आगरा जिले में चारों कोनों पर बसे शिवालयों में सिंकदरा स्थित कैलाश मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहां दो शिवलिंग एक साथ पूजे जाते है। यमुना किनारे स्थित इस मंदिर में दूर दूर से शिवभक्त खास सावन के महीने में यहां लगे विशाल मेले का हिस्सा बनते हैं और जुड़वा शिवलिंग के दर्शन कर जलाभिषेक करते हैं। मान्यता ये है कि इन दोनों शिवलिंग की स्थापना खुद परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने की थी।

आगरा में मथुरा फिरोजाबाद मार्ग पर तीन किमी अंदर की ओर बसे बीहड़ सिकंदरा क्षेत्र में स्थित कैलाश मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। चल रहे सावन माह में यहां अब तक लाखों भक्त जलाभिषेक कर चुके हैं। वहीं रोजाना भीड़ बढ़ती जा रही है। पुलिस ने सुरक्षा के खास इंतजाम किए हैं। इस कैलाश मंदिर को खास बनाते हैं यहां स्थापित दो शिवलिंग। ये दो शिवलिंग यहां कौन लाया कब लाया इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है। यही कथा श्रद्धालुओं को यहां बरबस खींच लाती है।

मंदिर के महंत राजकुमार बताते है कि त्रेता युग में भगवान् विष्णु के अवतार भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की आराधना की। पिता-पुत्र की कड़ी तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। इस पर भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने उनसे अपने साथ चलने और हमेशा साथ रहने का आशीर्वाद मांग लिया। इसके बाद भगवान शिव ने दोनों पिता-पुत्र को एक-एक शिवलिंग भेंट स्वरुप दिया। यमुना किनारे अग्रवन में बने ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका का आश्रम था। इसी आश्रम तक पहुंचने से कुछ किलोमीटर पहले दोनों रात्रि विश्राम को रुके। फिर सुबह होते दोनों पिता-पुत्र ने शिवलिंग ले जाने की कोशिश की तो ये वहीं स्थापित हो गए।

यही जगह कैलाश मंदिर के रूप में हजारों सालों से पूजी जा रही है। मंदिर के आसपास की हरियाली भरी छटा और पक्षियों का कलरव लोगों का मन मोह लेती है। कभी-कभार जब यमुना का जल-स्तर जब बढ़ा होता है और बाढ़ की स्थिति होती है तो यमुना का पवित्र जल कैलाश महादेव मंदिर के शिवलिंगों तक को छू जाता है। मंदिर के आसपास बड़ी संख्या में धर्मशालाएं श्रद्धालुओं की ओर से मनोकामना पूरी होने पर बनवाई गई हैं। यहां आने वाले भक्त लगभग 4 किमी दूर ऋषि जमदग्नि की पत्नी के आश्रम रेणुकाधाम भी पूरी श्रद्धा के साथ जाते हैं।

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