Uttrakhand

उत्तराखंड : अतीत में वोट बैंक की सियासत से ‘फ्लड जोन’ में पनपी बस्तियां…एनजीटी के आदेश भी बेबस

देहरादून, 19 सितम्बर 2025 :

उत्तराखंड राज्य बनने के नदी नालों किनारे फ्लड जोन में लगातार पनप रही बस्तियों ने यहां आने वाली प्राकृतिक आपदाओं को विनाशकारी रूप दे दिया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस बड़े खतरे को भांपकर पहले ही प्राकृतिक इलाकों को कब्जा मुक्त करने का फरमान जारी किया था। इसके बावजूद अतीत में वोट बैंक की राजनीति में लगातार इस फरमान की अनदेखी से अब एक बड़ी आबादी फ्लड जोन में बस चुकी है। नतीजा ये हुआ कि आपदा में भारी नुकसान के साथ बड़े पैमाने पर जनहानि भी हुई।

बता दें कि उत्तराखंड में बाहरी राज्यों से आए लोगों ने नदी नालों को घेर कर सरकारी भूमि पर जो अतिक्रमण किया है वो बेहद चौकाने वाले हैं।राजधानी देहरादून और जिले की बात की जाए तो राज्य बनने के वक्त यहां जिले में 75 मलिन बस्तियां थी जिनमे नाम मात्र की आबादी थी, लेकिन 2002 में इनकी संख्या बढ़ कर 102 और 2008 में 129 हो गई . 2016 में ये संख्या 150 तक जा पहुंची और अब ये संख्या 200 के करीब पहुंच गई है। राज्य की यदि बात करें तो 582 मलिन बस्तियां 2016 में सर्वे में आई थी जिनमे नगरीय क्षेत्र की 270 बस्तियां नियमित पहले से थी, अब मलिन बस्तियों की संख्या बढ़ कर अब 700 के आसपास बताई जा रही है। राज्य की खनन वाली नदियों और नालों के किनारे बाहर से आई आबादी ने सरकारी भूमि पर कब्जे कर बसावट कर ली है।

2016 में अवैध रूप से 771585 की आबादी ने 153174 मकान सरकारी भूमि पर बनाए हुए है जिनमे से 37 प्रतिशत नदी नालों के किनारे, 10 प्रतिशत ने केंद्र सरकार की भूमि पर, 44 प्रतिशत ने राज्य सरकार की राजस्व,वन, सिंचाई आदि भूमि पर अवैध रूप से बसावाट की हुई थी। अब आठ साल बाद इनकी संख्या 10 लाख के आसपास पहुंच गई बताई गई है। एक अनुमान के मुताबिक सरकारी भूमि पर कब्जे कर 57 प्रतिशत लोगो ने पक्के, 29 प्रतिशत ने अद्धपक्के और 16 प्रतिशत की झोपड़ियां है जो कि धीरे धीरे अद्धपक्के मकानों में तब्दील हो रही है।

इस साल मानसून में प्राकृतिक आपदाओं में इस अवैध बसावट का विनाशकारी रूप देखने को मिला।दून घाटी में पिछले दिनों बादल फटने की घटना में लगभग 40 लोगों की जान चली गई। देहरादून के बीच बहने वाली रिस्पना और बिंदाल बरसाती नदियों के दोनो तरफ कई किमी तक नदी श्रेणी फ्लड जोन की सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे है जो कि बरसाती नदियों का प्रवाह रोके हुए है। इस साल बिंदाल और रिस्पना ने दो बार शहर के अपने पुलो को छुआ है। इसी तरह टोंस, जाखन, सहस्त्रधारा, तमसा ने भी लोगों के घरों के दरवाजों पर दस्तक दे दी।

वोट बैंक की राजनीति की बात करें तो वर्ष 2016 में कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत बाहर से आए लोगों को यहां बसाने और उनकी बस्तियों को रेगुलाइज करने के लिए जो दांव खेला वो अब देहरादून में तबाही का कारण बन रहा है। कांग्रेस की इस घोषणा के पूरा होने से पहले ही राज्य में बीजेपी की त्रिवेंद्र रावत सरकार आ गई और उसने इन बस्तियों के नियमितिकरण पर रोक लगा दी, तब से लेकर अभी तक ये रोक जारी है लेकिन मलिन बस्तियों का विस्तार होने का क्रम अभी भी जारी है। इस साल जल प्रलय से सबसे ज्यादा प्रभावित बाहरी राज्यों से आए लोग ही हुए हैं। जिसकी वजह से राजनीति थोड़ी खामोश है यदि प्रभावित लोग उत्तराखंड के मूल निवासी होते तो सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी हो जाती।

फिलहाल इस बड़े खतरे को एनजीटी ने पहले ही भांप लिया था। उसने राज्य सरकार को बार बार आदेशित किया और जुर्माना भी लगाया कि उक्त भूमि खाली करवाएं ताकि नदियों के प्राकृतिक बहाव में कोई दिक्कत नही आए अन्यथा एक दिन बड़ा नुकसान हो जायेगा। एनजीटी ने देहरादून की बिंदाल, रिस्पना, नैनीताल जिले की गौला और कोसी नदियों, हरिद्वार में गंगा, उधम सिंह नगर में गौला,किच्छा आदि नदियों के फ्लड जोन के बारे में स्पष्ट निर्देश दिए कि यहां से अतिक्रमण हटाया जाए।अब एक बार फिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की तलवार सरकार पर लटकी हुई हैकिंतु शासन व प्रशासन राजनीतिक दबाव के चलते खामोश हो रहा है। फिलहाल ये मलिन बस्तियां व अवैध कब्जे भविष्य में एक बार फिर से दून घाटी को विनाशकारी आपदा में धकेल देंगी।

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