
अंशुल मौर्य
वाराणसी, 2 दिसम्बर 2024:
काशी की सुनहरी सुबह में, जहाँ गंगा की हवाएं और जीवन की हर धड़कन महसूस होती है, एक करुण पुकार गूंजी। लालपुर पांडेयपुर की गलियों में एक छोटा सा कबूतर जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा था, जब पतंग के धारदार मांझे ने उसकी उड़ान को जकड़ लिया।
लेकिन इस कठिन घड़ी में एक हीरो सामने आया – यातायात विभाग के एक सिपाही, जिन्होंने अपनी वर्दी की ड्यूटी से ऊपर उठकर मानवता की मिसाल कायम की। सिपाही ने न केवल एक स्कूल बस को रोका, बल्कि स्थानीय लोगों को एकजुट किया और शुरू हुआ एक अनूठा बचाव अभियान।
स्थानीय लोगों की मदद से, वह छोटा सा कबूतर, जो पहले डर और दर्द से त्रस्त था, अब सुरक्षित था। इस दृश्य ने काशी की उस अमर आत्मा को फिर से जीवित किया, जो हर जीव में परमात्मा का वास मानती है।
यह घटना सिर्फ एक कबूतर के बचाव की कहानी नहीं है, बल्कि यह काशी की मानवता, करुणा और प्रेम का प्रतीक बन गई है। सिपाही ने दिखा दिया कि वर्दी के पीछे केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और जीवन की रक्षा की जिम्मेदारी भी है।
आज का यह दिन काशी के लोगों को यह याद दिलाता है कि प्रेम, करुणा और मानवता की त्रिवेणी अभी भी काशी की गलियों में बहती है। एक सिपाही और स्थानीय लोगों के सामूहिक प्रयास ने एक जीवन को बचाया, और मानवता के प्रति उनके समर्पण ने सबको प्रेरित किया।
यह कहानी काशी के दिल की गूंज है, जो हमें यह सिखाती है कि एक सच्चे नायक का दिल हमेशा मानवता के प्रति संवेदनशील होता है।






