नयी दिल्ली,3 फरवरी 2025:
वसंत पंचमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो ज्ञान, कला, संगीत और प्रकृति के नवजागरण को समर्पित है। यह पर्व हर सर्दी के अंत और वसंत ऋतु के आगमन की सूचना देता है। माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाए जाने वाले इस उत्सव का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व अद्वितीय है।
वसंत पंचमी का धार्मिक महत्व
1. देवी सरस्वती की आराधना:
इस दिन विद्या, बुद्धि और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। छात्र, शिक्षक, कलाकार और बुद्धिजीवी इस दिन अपने उपकरण (किताबें, वाद्ययंत्र, तूलिका आदि) देवी के चरणों में अर्पित करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
2. विद्या का प्रारंभ:
वसंत पंचमी को “विद्यारंभ” के लिए शुभ माना जाता है। कई परिवारों में बच्चों को इस दिन पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है।
3. पीले रंग का प्रतीकवाद:
यह पर्व पीले रंग से जुड़ा है, जो वसंत की फूलती हुई सरसों, आम के बौर और प्रकृति की हरियाली का प्रतीक है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीले फूलों से पूजा सजाते हैं।
पूजन विधि और परंपराएं:
• सरस्वती पूजा:
घरों और मंदिरों में देवी सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करके पीले फूल, अक्षत, और मिठाई अर्पित की जाती है। “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का जाप किया जाता है।
• भोग और प्रसाद:
खीर, बूंदी, और पीले चावल का भोग लगाया जाता है। कई क्षेत्रों में बेसन के पकौड़े और केसरयुक्त व्यंजन बनाए जाते हैं।
• सांस्कृतिक कार्यक्रम:
स्कूलों और सांस्कृतिक संस्थानों में प्रतियोगिताएं, संगीत समारोह और कवि सम्मेलन आयोजित होते हैं।
• कविता और संगीत:संस्कृत साहित्य में वसंत को “ऋतुराज” कहा गया है। कवि कालिदास ने “ऋतुसंहार” में वसंत की महिमा गाई है।
उपसंहार
वसंत पंचमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति और मानवीय सृजनशीलता का समन्वय है। यह हमें ज्ञान प्राप्ति, कला के प्रति समर्पण और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का संदेश देता है। आइए, इस वसंत में नए विचारों को अपनाएं और देवी सरस्वती के आशीर्वाद से जीवन को सुंदर बनाएं।
शुभ वसंत पंचमी!