श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, भारतीय संस्कृति और धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस पवित्र त्योहार के दौरान, भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की विभिन्न घटनाओं का स्मरण किया जाता है, जिसमें उनकी लीलाओं, उनके उपदेशों और उनके जन्म की दिव्य कथा शामिल होती है। लेकिन इस कथा में एक और महत्वपूर्ण पात्र है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है – देवी योगमाया।
देवी योगमाया, जिन्हें शक्ति का अवतार माना जाता है, भगवान विष्णु की माया शक्ति के रूप में जानी जाती हैं। वह केवल भौतिक संसार की रचना में ही नहीं, बल्कि ईश्वरीय लीलाओं के संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनके द्वारा प्रदत्त शक्ति के कारण ही भगवान विष्णु विभिन्न अवतारों में इस संसार में प्रकट हो पाते हैं।
जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेने का निर्णय लिया, तब योगमाया ने इस लीला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वासुदेव और देवकी के आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ। कंस, जो देवकी का भाई था और श्रीकृष्ण को मारने के लिए दृढ़ संकल्पित था, ने यह भविष्यवाणी सुनी थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इस भय से, कंस ने देवकी और वासुदेव के सभी संतानों को मारने का प्रयास किया।
श्रीकृष्ण के जन्म के बाद, वासुदेव ने भगवान के निर्देशानुसार नवजात शिशु को गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास छोड़ने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु ने योगमाया से कहा कि वह देवकी के स्थान पर जन्म लें, ताकि कंस को धोखा दिया जा सके। योगमाया ने वासुदेव द्वारा गोकुल से लाए गए नवजात श्रीकृष्ण के स्थान पर स्वयं को रखा और कंस के सामने प्रकट हुईं।
कंस को जब यह सूचना मिली कि देवकी ने एक कन्या को जन्म दिया है, तो उसने क्रोध में आकर उस कन्या को मारने का प्रयास किया। लेकिन जैसे ही उसने योगमाया को उठाया, वे आसमान की ओर उड़ गईं और दिव्य रूप धारण करके कंस से कहा, “मुझे मारने से तुम्हारा अंत नहीं होगा। तुम्हारा काल तो पहले ही जन्म ले चुका है।” इस प्रकार, योगमाया ने अपने बलिदान से श्रीकृष्ण को कंस से बचाया और उनके जन्म की दिव्य योजना को सफल बनाया।
योगमाया का यह बलिदान केवल श्रीकृष्ण की रक्षा तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने ईश्वरीय योजना को साकार करने के लिए अपने अस्तित्व को दांव पर लगाया। उनके इस अद्वितीय त्याग और बलिदान के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण सुरक्षित रहे और उन्होंने बाद में कंस का वध कर धर्म की स्थापना की।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर, हमें देवी योगमाया के इस अद्वितीय बलिदान को भी स्मरण करना चाहिए। उनकी लीला और त्याग हमें यह सिखाते हैं कि सच्चे समर्पण और निस्वार्थ सेवा से ही हम ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। योगमाया का बलिदान न केवल धर्म की रक्षा के लिए था, बल्कि उन्होंने यह संदेश भी दिया कि नारी शक्ति का महत्व और सम्मान कितना आवश्यक है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के इस पवित्र अवसर पर, हम सभी को देवी योगमाया के अद्वितीय योगदान और उनके बलिदान का स्मरण करना चाहिए और उनसे प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलाने का संकल्प लेना चाहिए।