
नई दिल्ली, 2 जुलाई 2025
जम्मू-कश्मीर की रक्षंदा राशिद को लेकर केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट आमने-सामने आ गए हैं। 62 वर्षीय रक्षंदा, जो पिछले 38 वर्षों से भारत में रह रही थीं, हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार के आदेश पर पाकिस्तान भेज दी गईं। अब उन्हें वापस बुलाने के हाई कोर्ट के आदेश पर केंद्र ने आपत्ति जताई है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह रक्षंदा राशिद को 10 दिन के भीतर भारत वापस लाए। इसके जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि यह आदेश संवैधानिक और कूटनीतिक दृष्टि से अस्वीकार्य है, क्योंकि यह भारत की न्यायिक सीमा से बाहर जाकर पाकिस्तान में लागू करने का निर्देश देता है।
गृह मंत्रालय ने साफ किया कि न्यायपालिका कार्यपालिका के निर्वासन निर्णय को रद्द नहीं कर सकती और इस तरह का निर्देश भारत की संप्रभुता और कूटनीति पर असर डाल सकता है। मंत्रालय ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) दायर की है।
रक्षंदा राशिद का जन्म पाकिस्तान में हुआ था, लेकिन वे भारत में लॉन्ग टर्म वीजा (LTV) पर रह रही थीं। उन्होंने 1996 में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन भी किया था, जो अभी लंबित है। उनके पति और दोनों बच्चे भारत में हैं। उनकी बेटी का कहना है कि निर्वासन के बाद से रक्षंदा लाहौर के एक होटल में अकेले रह रही हैं और जल्द ही उनके पास पैसे भी नहीं बचेंगे।
मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि विदेशी नागरिक केवल विवाह के आधार पर भारत की नागरिकता का दावा नहीं कर सकते और न ही उन्हें भारत में रहने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। मंत्रालय ने कहा कि यह आदेश अगर बरकरार रहा तो यह एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा, जिससे विदेशी नीति और आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है।
रक्षंदा का मामला अब भारत की न्यायिक व्यवस्था और कार्यपालिका की सीमाओं को लेकर अहम बहस का केंद्र बन गया है।






